सोवियत रूसकी एशिया-सम्बन्धी नीति ३८१ पाया जाता है । लेनिनने एशिया और अफ्रीकाके देशोको तीन भागोमे वाँटा । पहले विभागमे वे देश आते है जहाँ वर्तमान युगकी वैज्ञानिक व्यवसाय-पद्धतिका उपक्रम नही हुआ है, पर जो साम्राज्यवादी राष्ट्रोद्वारा पददलित हो रहे है और ग्रसे जाते है । दूसरे विभागमे वे देश परिगणित है जहाँ इस नवीन व्यवस्था-पद्धतिका उपक्रम तो हो गया है, पर उसका विशेष रूपसे विकास नही हुआ है । तीसरी कोटिमे वे देश आते है जहाँ इस पद्धतिका काफी चलन हो गया है । पहले प्रकारके देशोके सम्बन्धमे लेनिनकी यह नीति थी कि वहाँ केवल राष्ट्रीय आन्दोलनको सहायता देकर सवल बनाना चाहिये और साम्यवाद- प्रचारका प्रयत्न न करना चाहिये । दूसरे प्रकारके देशोमे वह साम्यवादका प्रचार करना तो चाहता था, पर वह इस बातका पक्षपाती न था कि उस देशके साम्यवादी राष्ट्रीय आन्दोलनका नेतृत्व ग्रहण करे । तीसरे प्रकारके देशोके सम्बन्धमे उसकी यह स्पष्ट राय थी कि इनमे केवल एक साम्यवादी दलकी सृष्टि करना ही पर्याप्त न होगा, अपितु इस दलको राष्ट्रीय आन्दोलनका नेतृत्व भी ग्रहण करना चाहिये । भारतके सम्बन्धमे उसका विचार था कि यहॉ यूरोपीय महासमरके वादसे नवीन व्यवसाय-पद्धतिकी अच्छी तरक्की हुई है और इसलिए भारतमे साम्यवादका प्रचार सुलभ है। इसीलिए भारतको उन्होने तीसरी कोटिमे रखा था। इस समय भारतमे राष्ट्रीय आन्दोलनपर मध्यमश्रेणीके लोगोका ही अधिकतर अधिकार है । यहाँके कम्युनिस्ट अभी इतनी शक्तिका सग्रह नही कर पाये है कि वे भारतकी राष्ट्रीय सस्था काग्रेसपर अधिकार प्राप्त कर सके । पर चीनका उदाहरण हमारे सामने है । चीनको साम्राज्यवादसे छुटकारा दिलानेमे रूसकी अच्छी खासी सहायता थी। रूसने जारके समयके अपने सारे अधिकारोका परित्याग कर दिया था। उसने चीनियोकी राष्ट्रीय सस्था कुप्रोमिन्ताङ्गका नवीन ढगसे सघटन करनेमे सहायता दी थी तथा रण-शिक्षा देनेके लिए रूससे सुयोग्य शिक्षक भी भेजे थे । चीनके नेता सनयातसेनने सोवियतकी सहायताको मुक्तकण्ठसे स्वीकार किया था और यदि आज चीन स्वतन्त्र राष्ट्र कहलानेके योग्य हो गया है, तो इसका बहुत कुछ श्रेय सोवियत रूसको है । सोवियत रूसने ही चीनको प्रचारकी नवीन पद्धति बतायी और साम्राज्यवादका विरोध करनेमे उसकी हर प्रकारसे सहायता की। पर आज हम क्या देखते है ? चीनका राष्ट्रपति च्यागकाई शेक जिसने रूसमे रणशिक्षा प्राप्त की थी आज सोवियत रूसका विरोध करनेपर तुला हुआ है और जिन साम्राज्यवादी राष्ट्रोसे छुटकारा पानेके लिए चीन कल रूसका सहारा ले रहा था आज उन्हीसे मित्रता स्थापित कर रहा है । इसका कारण यही है कि कम्युनिस्ट दल कुमोमिन्ताङ्गपर प्रधानता पाना चाहता था और उसकी यह इच्छा थी कि चीनमे जो नयी व्यवस्था कायम हो उसमे साम्यवादके सिद्धान्तोके अनुसार कार्य किया जाय । पर यह वात च्यागकाई शेक और उनके अनुयायियोको पसन्द न थी। च्यागकाई शेक पुराने विचारोका समर्थक था और साम्यवादके प्रभावको बढता हुआ नहीं देख सकता था। उसने कम्युनिस्टोका घोर विरोध किया और उनके ऊपर नाना प्रकारके अत्याचार किये। यहाँतक कि चीन और रूसके बीच युद्ध होनेकी आशका बढती जाती है और लडाईके वादल उमडे चले आ रहे है । च्यागकाई शेक यद्यपि अपने कई साथियोकी अपेक्षा कही अच्छा है,
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