पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४००

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सोवियत रूसकी एशिया-सम्बन्धी नीति ३८५ शासन इसलिए अपने सव हकोको छोड़ता है और घोषित करता है कि ये कर्जे वसूल नही किये जायेंगे। ४. सोवियत शासन पूंजीवादकी एशिया-सम्बन्धी नीतिकी खुले शब्दोमे निन्दा करता है और उसकी यह सम्मति है कि इस नीतिके कारण ही एशियाके निवासियोको अनेक कष्ट सहने पड़े है। ५ सोवियत शासन फारसके आन्तरिक मामलोमे किसी प्रकारका हस्तक्षेप न करेगा। ६. सोवियत रूस और फारसके बीच व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित होगा। जो सन्धि तुर्कीके साथ हुई उसकी पहली धारामे इस वातका स्पष्ट उल्लेख पाया जाता है कि दोनों पक्षोको साम्राज्यवादका विरोध करना है और दोनोका स्वार्थ यह चाहता है कि उनमें आपसमे मिन्नता स्थापित हो । सन् १९२५ (वि० स० १९८२) मे पेरिसमे सोवियत रूस और तुर्कीके दमियान एक दूसरी सन्धि हुई थी जिसके द्वारा दोनो पक्ष इस वातके लिए वचन-बद्ध हुए कि वे एक दूसरेके विरुद्ध किसीकी सहायता नहीं करेगे । दो वर्ष बाद एक व्यापारिक सन्धि भी हुई । अफगानिस्तानके साथ जो सन्धि सन् १९२१ (वि० स० १९७८) मे हुई उसके द्वारा सोवियत रूसने अफगानिस्तानकी स्वतन्त्रता और प्रात्म-निर्णयके अधिकारको स्वीकार किया । सन् १९२६ (वि० स० १६८३) मे एक सुलहनामा और हुआ जिसके जरियेसे उन्होने यह निश्चय किया कि वे एक दूसरेपर अाक्रमण नही करेगे और एक दूसरेके विरुद्ध किसीके साथ सन्धि नही करेगे और एक दूसरेके विरुद्ध किसी आर्थिक अवरोधमें सम्मिलित न होगे और वे किसी ऐसी गवर्नमेण्टकी न तो सहायता करेगे और न उसका साथ देगें जो उनमेसे किसीके आन्तरिक मामलोमे हस्तक्षेप करे । यदि उनमेसे किसीका किसी तीसरे राष्ट्र के साथ झगडा हो तो दूसरा उदासीन रहेगा। उनमेसे कोई अपने राज्यके भीतरसे किसी प्रकारका लडाईका सामान या फौज न जाने देगा जिसका प्रयोग दूसरेके विरुद्ध किया जाय । पूर्वीय एशियामे सोवियत रूसको एक मिन-राष्ट्रकी आवश्यकता थी। जापान यद्यपि सवल राष्ट्र था तथापि उसकी नीति साम्राज्यवादकी थी। उसको अपने व्यापारके लिए कच्चे वाने और मण्डियोको आवश्यकता थी। यूरोपीय युद्धसे लाभ उठाकर उसने शान्तुङ्ग ले लिया और सन् १९१५ (विक्रम सं० १९७२) मे चीनके सामने इक्कीस माँगें रखी जिनको चीनी सरकारको विवश होकर स्वीकार करना पडा । सन् १९१८ (विक्रम सं० १९७५) मे जापानने व्लाडीवास्टकपर आक्रमण कर दिया । सोवियत रूसके विरुद्ध कोलचककी सहायताके लिए साइबेरियामे उसने अपनी सेना भेजी थी; सखलीनके उत्तरी भागपर, तेलके चश्मोके लोभसे, उसने अधिकार जमा लिया था। जापानकी शक्तिको वढता हुअा देखकर सयुक्त राष्ट्र अमेरिका और ग्रेट ब्रिटेन भयभीत हो गये थे । वे जापानकी शक्तिको बढानेमे सहायता देना नही चाहते थे। इग्लैण्ड और जापानके बीच जो सन्धि हुई थी उसकी अवधि बीत चुकी थी। सयुक्त राष्ट्र अमेरिका और जापानके बीच अच्छा सम्बन्ध नही था और इंग्लैण्ड इस सन्धिकी अवधिको बढाकर अमेरिकाको नाराज करना २५