पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४०१

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३८६ राष्ट्रीयता और समाजवाद नही चाहता था। वाशिङ्गटन कान्फरेन्सकी कार्यवाहीसे प्रारम्भमें आपसका मनोमालिन्य और भी बढ गया था । सन् १९२४ (वित्राम स० १९८१) मे सयुक्त राष्ट्र अमेरिकाने एक कानून बनाकर जापानके निवासियोको अमेरिकामे आकर बसनेसे रोक दिया । इन सव कारणोसे जापानकी राजनीतिक स्थिति रूसके अनुकूल होती गयी और सोवियत स्सने इस स्थितिसे पूरा लाभ उठाकर जापानके साथ रियायते करके जापानसे मित्रता कर ली। पूर्व इसके कि रूस और जापानकी सन्धि हुई रूसने सन् १९२४ (विक्रम सं० १९८१) मे चीनसे सन्धि की । सन् १९२० (विक्रम स० १९७७) ही मे सोवियत शासनने इस बातकी घोषणा की थी कि रूस.उन सव अधिकारोंका परित्याग करनेको तैयार है जिनको जारकी गवर्नमेण्टने चीनमे प्राप्त किया था और इसके लिए वह कोई मुआवजा भी न लेगा। इसके वादसे ही चीनकी राष्ट्रीय सरकार और सोवियत रूसके बीच मित्रता बढने लगी। चीन विदेशियोद्वारा पदे-पदे अपमानित हो रहा था। इस अवज्ञा और तिरस्कारको अब वह सह नहीं सकता था। साम्राज्यवादी राष्ट्रोसे उसको कोई ग्राशा न रही। उसने सोवियत रूसकी ओर हाथ बढ़ाया और सन् १९२४ (विक्रम सं० १९८१) मे दोनो राष्ट्रोके बीच एक सन्धि हुई जिसके द्वारा रूसने उन सब अधिकारोका परित्याग किया जो उसे प्राप्त थे। कानो और जगलातमे जो हक रूसको मिले थे वे बिला मुअावजेके वापस कर दिये। इस प्रकार सन् १९२० (विक्रम सं० १९७७)) की घोषणाको सोवियत रूसने अक्षरशः सत्य प्रमाणित कर दिया । चाइनीज ईस्टर्न रेलवेके सम्बन्धमे यापसमे यह निश्चय हुआ कि इसका प्रवन्ध रूसी और चीनी दोनोंके हाथमें रहेगा। इस सन्धिका संयुक्त राष्ट्र अमेरिकाने विरोध किया था। पर चीनने इसका यह उत्तर दिया कि यह हमारी घरेलू वात है, इसमे किसी दूसरेको हस्तक्षेप करनेका अधिकार नहीं है । रूसने चीनके साथ समानताका व्यवहार किया और कराखाँको अपनी ओरसे राजदूत नियुक्त किया । यह पहला ही अवसर था कि किसी राष्ट्रकी पोरसे राजदूतको हैसियतका कोई अधिकारी चीनमे नियुक्त किया गया हो । अपने अधिकारोकी रक्षा करनेमे चीनको राष्ट्रीय सरकार- को सोवियत रूसने हर तरहकी सहायता पहुँचायी। रूसका प्रभाव चीनमे धीरे-धीरे वढने लगा और जव सन् १९२५ (विक्रम सं० १९८२) मे चीनी प्रजातन्त्रके अध्यक्ष डाक्टर सनयात सेनकी मृत्यु हुई तब इस सम्बन्धको और भी मजबूत करनेके लिए रूसने उसकी यादगारमे एक विश्वविद्यालय खोला । साम्राज्यवादी राष्ट्र स्तके इस बढ़ते हुए प्रभावको देखकर घबडा गये । उन्होने कहना शुरू किया कि सोवियत रूस लोगोको भड़काता है । और उसके बहकानेमे पाकर कुली हडताल कर देते है । इसके उत्तरमे कराखॉने कहा , था कि "हमारा यह प्रभाव प्रचार-कार्यका फल नहीं है बल्कि उस न्यायानुमोदित नीतिका-फल है जिसको कि सोवियत रूस चीनके साथ वरत रहा है। हमने इस नीतिको केवल शब्दोद्वारा ही नही व्यक्त किया है बल्कि इस नीतिको कार्यान्वित करके यह दिखला दिया है कि हम चीनके साथ न्यायका व्यवहार करना चाहते है । यदि हमारा यही अपराध है तो हम इसे स्वीकार करते है और हम इसके लिए लज्जित नहीं है बल्कि हमको इसका गर्व ।" एक दूसरे मौकेपर कराखाँने अमेरिकाके एक सम्वाददाताके पूछनेपर कहा था कि