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पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४१

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२८ राष्ट्रीयता और समाजवाद और अंग्रेजोकी मनोवृत्तिका परिचय पाकर महात्माजीके विचार यहाँके विदेशी शासनके वारेमे एकदम बदल गये । वे एक कट्टर सहयोगीसे कट्टर विरोधी हो गये । बोअर युद्ध तथा जुलू-विद्रोहके समय महात्माजीने अंग्रेजोकी सहायता की थी। यूरोपीय महायुद्धके समय फौजमे भर्ती होकर ब्रिटिश साम्राज्यकी रक्षा करनेके लिए लोगोको प्रोत्साहित किया था । १९१९ की अमृतसर-कांग्रेसमे मुधार-योजनाको काग्रेस-वारा स्वीकार करानेके लिए उन्होने बहुत परिश्रम किया था, पर जव सरकारने अपने कृत्योंके लिए पश्चात्ताप नहीं किया और अपने मुलाजिमोको उनके किये हुए अत्याचारोके लिए उचित दण्ड नहीं दिया बल्कि हर प्रकारसे प्रजाके विरुद्ध उन्हीका पक्ष लिया तव गाधीजीकी यह धारणा हो गयी कि यह एक शैतानी हुकूमत है और इससे सहयोग करना महापाप है । इङ्गलैण्डने भारतीय मुसलमानोके साथ भी विश्वासघात किया । युद्धके समय भारतीय मुसलमानोको अपने साथ रखनेके लिए इङ्गलैण्डके प्रधान सचिवने यह वचन दिया था कि मुसलमानोके धार्मिक विचारोका खयाल रखा जायगा और तुर्कीके साथ न्याय होगा। यूरोपीय युद्ध ११ नवम्बर १९१८ को स्थगित हुआ था । २८ जून १९१६ को जर्मनीके साथ वसयिकी सन्धि हुई और यद्यपि तुर्कोने सेरे ( Sevre ) के सन्धि-पत्रपर १० अगस्त १९२०को हस्ताक्षर किया था; तथापि इस सन्धिको गर्ते हिन्दुस्तानमे इससे वहुत पहले मालूम हो गयी थी। सब तुर्कोने भी इस सन्धिको स्वीकार नहीं किया था । मुस्तफा कमाल- पाणाके नेतृत्वमे तुर्कोका एक दल इस सन्धिका विरोध करनेकी तैयारीमें लगा था । इस सन्धिके अनुसार तुर्कीको मिस्त्र, अरव, मेसेपोटामिया, पेलेस्टाइन और सीरियापरसे अपना अधिकार उठा लेना पडा था। सन्धिकी शर्तोको मुनकर हिन्दुस्तानके मुसलमान बहुत विह्वल हो गये थे; क्योकि उनको इस सन्धिसे इस वातकी आगका हो गयी कि खिलाफतका गौरव और प्रभाव नष्ट हो जायगा और जजीरतुल अरवपर ईसाइयोका नियन्त्रण हो जायगा । अखिल भारतवीय काग्रेस कमेटीकी जो वैठक ३०, ३१ मई १९२०को वनारसमे हुई थी उसने इस वातका निश्चय किया कि असहयोगकी नीतिपर विचार करनेके लिए कलकत्तेमे कांग्रेसका विशेप अधिवेशन किया जाय । पूर्व इसके कि काग्रेसने असहयोग- की नीतिको स्वीकार किया, केन्द्रीय खिलाफत समितिने इस नीतिका निश्चय कर लिया था। सितम्बर सन् १९२०मे काग्रेसका जो विशेप अधिवेगन हुग्रा उसने अहिंसात्मक असहयोगकी नीतिको स्वीकार किया और इस सिद्धान्तके अनुसार अपना एक नया कार्यक्रम प्रस्तुत किया। खिताबोका छोडना, सरकारी स्कूल और कालेज तथा सरकारसे सहायता पानेवाले या इसके नियन्त्रणको स्वीकार करनेवाले स्कूल और कालेजोसे अपने लडकोको निकाल लेना, राष्ट्रीय विद्यालयोको स्थापित करना, सरकारी अदालतोका वहिप्कार और पचायतोकी स्थापना, नयी कौसिलों और विदेशी मालका वहिप्कार-इस कार्य- क्रमके प्रधान अङ्ग थे । नागपुरकी काग्रेसमे असहयोगका प्रस्ताव दुहराया गया और कांग्रेसका फिरसे सगठन किया गया । सव उचित और शान्तिमय उपायो द्वारा स्वराज्यकी प्राप्ति, कांग्रेसका ध्येय बनाया गया । लोकमान्यकी स्मृतिमे 'स्वराज्य फण्ड' कायम किया गया और काग्रेसके कार्यक्रमको अच्छी तरह चलानेके लिए प्रान्तीय काग्रेस कमेटियोको