पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४०

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भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनका इतिहास २७ 'सत्यमेव जयते नानृतम्', 'यतो धर्मस्ततो जय.' अर्थात् सत्य ही अन्तमे विजयी होता है और जहाँ धर्म है वही जय है-ऐसी अनेक उक्तियाँ अपने पुराने ग्रन्थोमें पायी जाती हैं। इस प्रकार शास्त्र भी सत्य और धर्मको सफलताकी कसौटीपर ही कसता है । यदि सत्य और अहिसाके पालनसे केवल प्राध्यात्मिक उन्नति ही होती हो और जीवनके दैनिक व्यवहार- मे उनका कुछ उपयोग न हो तो धर्म और सत्यपर लोगोकी आस्था कायम नही रह सकती। महात्माजीने सत्याग्रहकी पद्धतिका विकास कर और जीवनमे उसका सफलताके साथ प्रयोगकर यह स्पष्ट दिखला दिया है कि सत्याग्रह एक सुन्दर कल्पना मात्र नही है जिसकी साधना केवल साधु-महात्मा कर सकते है, किन्तु यह सर्वसाधारणके लिए सुलभ और हर प्रकारसे व्यवहार्य है। रौलट ऐक्टका विरोध करनेके लिए महात्माजीने इस नवीन रणनीतिका उपयोग किया था और इससे उनको सफलता भी प्राप्त हुई , क्योकि यद्यपि ये कानून व्यवस्थापक सभासे पास हो चुके थे, तथापि सरकार इनको कार्य-रूपमे परिणत करनेकी हिम्मत न कर सकी । भारतवासियोने इस नये अस्त्रका प्रयोग पहली ही बार किया था। उनके लिए यह एक नया अनुभव था। इसलिए कई जगह सत्याग्रह आन्दोलन अहिंसात्मक न रह सका । अहमदावाद और अमृतसरमे वलवे हो गये । फौजकी सहायतासे सरकारने विद्रोहको शान्त किया । गाधीजीने सत्याग्रह आन्दोलनको स्थगित कर दिया और शान्तिकी स्थापनामे सरकारकी हर तरहसे सहायता की । पजाव एक फौजी सूवा समझा जाता है । इसलिए वहॉकी सरकार राजनीतिक आन्दोलनोसे सदा भयभीत और त्रस्त रहा करती है और इन आन्दोलनोके कुचलनेके लिए तरह-तरहके उपायोसे काम लिया करती है । बलवेके शान्त हो जानेके बाद भी पजावमे फौजी कानून जारी किया गया । १३ अप्रैल १९१९को जलियाँवाला वागका हत्याकाण्ड हुआ । इस घटनाके दो दिन पश्चात् सम्पूर्ण पञ्जावमे फौजी कानून जारी कर दिया गया । अमृतसर, गुजराँवाला, कसूर और पञ्जावके कई स्थानोमे प्रजापर नाना-भांतिके अत्याचार किये गये। लोगोकी जायदादे जन्त की गयी, नेताअोको हर तरहसे अपमानित और जलील किया गया, लोगोको डराने और धमकानेकी गरजसे मध्ययुगकी अनेक अजीब-अजीब सजाअोसे काम लिया गया। डायरने अमृतसरकी गलियोमे लोगोको पेटके बल चलाया । जब ये खबरे अन्य प्रान्तोमे पहुँची तो देशभरमे तहलका मच गया । लोकमतको क्षुन्ध देखकर लगभग छः महीने बाद सरकारने इन घटनाप्रोकी जाँच करानेके लिए हण्टर कमीशनकी नियुक्ति की । इधर काग्रेस कमेटीने भी अपनी जाँच शुरू की। १९२०मे अखिल भारतवर्षीय काग्रेस-कमेटीने सर माइकेल प्रोडायरके ऊपर पार्लमेण्टमे अभियोग चलानेका निश्चय किया और भारतके तत्कालीन वायसरायको इङ्गलैण्ड वापस बुला लेने तथा ऐसे सब अहलकारोको अपने पदसे अलग करने एवम् उनको दण्ड देनेका अनुरोध किया, जिनके विरुद्ध काग्रेसकी जाँच-कमेटीके पास पर्याप्त प्रमाण उपस्थित थे। सरकारने काग्रेसकी माँगपर कुछ ध्यान नही दिया; वल्कि वहुतसे अग्रेज डायरके कार्योकी स्तुति करने लगे और उसकी सहायताके लिए आपसमे चन्दाकर उन्होने कुछ धन भी एकत्र किया । सरकारकी इस नीतिको देखकर