पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४१६

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पेरिसका शान्ति-सम्मेलन ४०३ इसलिए मोलोटोवका अनुरोध है कि रूरके प्रेवन्धमे रूसका भी हाथ हो और इसी कारण वे रूरकी व्यावसायिक शक्तिको किसी दूसरे आधारपर बटने देना नही चाहते । मोलोटोव जर्मनीकी एकताके पक्षमे है और जर्मनीसे रूरको अलग करनेकी जितनी योजनाएँ है उन सवका वह विरोध करते है। उनका यह ख्याल है कि विभाजनका फल यह होगा कि रूर अकेले पश्चिमके नियन्त्रण मे आ जायगा। इसके विपरीत फ्रास रूरको जर्मनीसे अलग करना चाहता है । मोलोटोवकी नीतिसे फ्रासके कम्युनिस्टोको काफी परेशानी होती है । जब रूरने अमेरिकाके प्रस्तावको नही माना तो अमेरिका और इगलैण्डने अपने क्षेत्रोको एक कर लिया । वे आशा करते है कि इसमे आगे चलकर रूसी क्षेत्रभी शामिल हो जायगा । हरजानेके प्रश्नपर संघर्ष है । मोलोटोवका कहना है कि क्रीमिया सम्मेलनके निश्चयके अनुसार रूसको हरजानेके लिए केवल जर्मन सामान ही नही दिया जायगा, किन्तु वह वर्तमान व्यावसायिक उत्पत्तिसे भी अपना हरजाना पूरा करेगा । मोलोटोवका यह भी कहना है कि अमेरिकाने यह मान लिया था कि सोवियत रूसको १० हजार मिलियन डालर हरजानेके मिलेगे । अवतक यह विचार था कि पोट्सडैमके समझौतेके बाद क्रीमियाके निश्चय रद्द हो गये है । पौट्सडैमका निश्चय . जर्मनीके उत्पादनके साधनोको धीरे-धीरे इतना घटा देता है कि जर्मन लोग केवल साधारण यूरोपीय स्टैडर्डके अनुसार रह सके । इस निश्चयका यह अर्थ होना चाहिये कि वर्तमान उत्पत्तिसे हरजानेकी रकम नही वसूली जायगी। जब कहा जाता है उत्पत्तिको बढाना चाहिये तब मोलोटोव इसकी आवश्यकताको स्वीकार करते हुए कहते है कि इसमे बहुत दिनोतक पर्याप्त वृद्धि नही की जा सकती है और यदि वृद्धि आवश्यक है तो यह वात इस शर्तपर स्वीकार की जा सकती है कि नाजियोके प्रभावको कडाईके साथ नष्ट किया जाय और जर्मनीकी युद्ध-शक्ति- को निर्मूल कर दिया जाय । जर्मन आज भूखो मर रहे है और जब ऐसी अवस्थामे रूसकी ओरसे ब्रिटिश क्षेत्रके और कारखानोकी मॉग पेश होती है, तो ग्रेट ब्रिटेन समझता है कि उससे जर्मनोको जिन्दा रखनेका खर्च बर्दाश्त करनेको कहा जाता है । मोलोटोवकी शिकायत है कि अग्रेज और अमेरिकन क्षेत्रमे फासिज्म को निर्मूल करनेकी चेष्टा पूरी तरह नही हो रही है और न लोकतन्त्रको आधार-शिला ही ठीक तरह रखी जा रही है । यहाँ हमको स्मरण रखना चाहिये कि लोकतन्त्रसे रूसका अर्थ यह है कि जनताके हितकी दृष्टिसे उचित आर्थिक सुधार किये जायें । उनके मतमे बिना इसके कोई प्रजातन्त्र शासन सम्भव नही है । इसके विपरीत अमेरिकनोका मत है कि पहले राजनीतिक परिवर्तन होने चाहिये और फिर नये शासनको आर्थिक सुधार करनेकी स्वतन्त्रता रहनी चाहिये । किन्तु जव इंगलैण्डमे मजदूर सरकार है तो आर्थिक परिवर्तन करनेमे एटली साहवको कठिनाई नही होनी चाहिये । अमेरिकाकी नीति अब हम अमेरिकाकी नीतिपर विचार करे। इंगलैण्डका साम्राज्य तो ह्रासकी अवस्थामे है, वह दुर्वल और क्षीण हो रहा है । किन्तु अमेरिकाका 'डालर इम्पीरियलिज्म'