पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४१५

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४०२ राष्ट्रीयता और समाजवाद वोटके सिद्धान्तपर अड़ गये। ऐसा मालूम पड़ा मानो दोनो समूहोमे सघर्प हो जायगा । ऐसी अवस्थामे ब्रिटिश प्रतिनिधियोने यह समझौता पेश किया कि जो संशोधन वहुमतसे पास हो, वे भी कार्यक्रममे स्थान पाये और जिनको दो-तिहाई वोट मिलें उनपर भी गम्भीरतासे विचार किया जाय । इस विचारसे यापसका मनमुटाव और सन्देह और भी वढ गया । रूसियोका विचार है कि अंग्रेज और अमेरिकन प्रतिनिधियोकी रजामन्दीके विना डा० ईवाट ऐसा दुस्साहस नही कर सकते थे। यह वाद-विवाद व्यर्थहीका था, क्योकि अन्तमे चार बड़े राष्ट्रोपर ही सव निर्भर करता है। छोटे राज्य यदि यह समझे कि उनके वोटसे जो निश्चय होगे वे सम्मेलनके निश्चय माने जायेंगे तो यह उनकी भूल होगी। उनके अधिकार सीमित है और यही तथ्य है कि जो चार बड़े राष्ट्र करेगे वही होगा । इनमें समझौता होना चाहिये और यही नही हो रहा है । इस संघर्पमे बहुत समय नष्ट हुया । जव वेविन साहव वापस आये तव उन्होने वैदेशिक सचिवोकी एक मीटिंग की और वे सुलहसे काम करे इसका प्रयत्न किया । किन्तु कौसिलमे फिर झगड़ा हो गया है और काम प्रागे नही बढ रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय दलवन्दी हमने ऊपर इसका उल्लेख किया है कि सम्मेलनमे दो दल है । ये पूर्वी और पश्चिमी ब्लाकके नामसे पुकारे जाते है । परस्परके सम्बन्ध और सन्देहके अनेक कारण है । यह कहना कि महायुद्ध समाप्त हो गया है, ठीक न होगा । नाजियोपर जवतक विजय नहीं प्राप्त हुई थी तबतक किसी प्रकार मित्रराष्ट्र मिल-जुलकर काम कर रहे थे। किन्तु नाजियोकी हारके बादसे ही वे आपसमे झगडने लगे है । ग्रेट ब्रिटेन और संयुक्तराष्ट्रके पास सारे संसारमे जहाँ तहाँ हवाई और समुद्री अड्डे है । किन्तु रूस अड्डोंके लिए अपना दावा पेश करता है तव ये उसको सन्देहकी दृप्टिसे देखने लगते है। अमेरिकाकी नौशक्ति सवसे प्रवल है और इसलिए वह चाहता है कि समुद्रपर सवको स्वतन्त्रता प्राप्त हो । किन्तु उसका कहना है कि डार्डनेल्समे रूसको स्वतन्त्रा न दी जानी चाहिये, नही तो वह भूमध्य- सागरमे चला आयेगा । रूसकी आर्थिक पद्धति सामुदायिक ( Collectivist ) है, किन्तु हगरीमे वह राजनीतिक शक्तिका उपयोग अपनी आर्थिक स्थितिको प्रवल बनानेमे करता है। ग्रेट ब्रिटेन अपने लिए तो इटलीके एक-दो उपनिवेश चाहता है, पर सोवियत रूसको इन उपनिवेशोमे हिस्सा नहीं देना चाहता है । पेरिसके सम्मेलनमे वही हो रहा है जो जर्मनीमे हो रहा है । जर्मनीकी एकता माननेके लिए फ्रास्को छोड़कर तीन बड़े राष्ट्र तैयार है और वे यह भी मानते है कि जर्मनीके उद्धारके लिए उसकी आर्थिक एकता जरूरी है । किन्तु रूर ( Ruhr ) के सम्बन्धमे मोलोटोवका कहना है कि व्यवसायके इस क्षेत्रका नियन्त्रण चारो शक्तियाँ मिलकर करे । उनका विचार है कि पश्चिमके राष्ट्र जर्मनीके युद्धके साधनोका विनाश नही चाहते और वे अकेले पश्चिमी ब्लाककी अधीनतामे रूरका निर्माण करना चाहते है, जिससे भावी युद्धमे वे उसका उपयोग सोवियतके विरुद्ध कर सके ।