पेरिसका शान्ति-सम्मेलन ४०५ बिर्न्स इसको नही छिपाते कि वह ४० लाखकी फौज तैयार रखना चाहते है । कोरिया और फिलिस्तीनमे लोकतन्त्रका गला घोटा जा रहा है और चीनमे गृहयुद्ध हो रहा है । मध्यपूर्वसे रूसको निकालनेका उद्योग हो रहा है । डार्डनेल्सके सम्बन्धमे भी रूससे मतभेद है । रूस समझता है कि उसकी रक्षाके प्रश्नसे केवल रूस, रूमानियाँ,वुलगारिया और तुर्कीका ही सम्वन्ध रहे । जिस प्रकार डैन्यूवसे रूस बाहरवालोको निकालना चाहता है, उसी प्रकार वह काले सागरमे बाहरी शक्तियोका दखल नही चाहता । अमेरिका डार्डनेल्सके प्रश्नको तुर्की और इगलैण्डका प्रश्न मानता है और इसलिए वह इस मामलेमें इंगलैण्डका समर्थन करता है। रूसकी नीति हमने सक्षेपमे यह दिखानेकी चेष्टा की है कि किन कारणोसे समझौता नही हो रहा है और दल बन रहे है, जो भावी युद्धकी सूचना देते है । ब्रिटिश और अमेरिकन प्रचार इस आशयका होता है कि अकेले रूसके कारण समझौता नही हो रहा है तथा रूसकी नीति अपने राज्यका विस्तार करना है । हम रूसकी वर्तमान नीतिके हर हालतमे समर्थक नही है, किन्तु हम इगलैड और अमेरिकाको कुछ ज्यादा ही दोषी समझते है । सोशलिस्ट स्टेट होनेके नाते हम यह अवश्य पसन्द नही करते कि रूस इन साम्राज्यवादी राष्ट्रोकी नीतिका अनुकरण करे तथा आत्मरक्षाके लिए ठीक उसी तरह व्यवहार करे जिस तरह ये राष्ट्र करते है। हम यह अवश्य स्वीकार करते है कि रूसको साम्राज्यवादी अमेरिकासे भय है और भयसे प्रेरित होकर ही आज उसकी नीति निर्धारित होती है । जिस प्रकार इंगलैण्डकी कोई स्थायी वैदेशिक नीति नहीं है, जो सिद्धान्तोपर आश्रित हो, उसी प्रकार रूसकी नीति किसी सिद्धान्तपर आश्रित नही है । आत्मरक्षाके भावसे प्रेरित होकर ही रूस आज अपनी नीति बनाता है। किसी नये युगके उपयुक्त जीवनके नये मूल्योको ध्यानमें रखकर नही । यह बड़े दुखकी वात है । ससारके एकमात्र सोशलिस्ट राज्यका इस वुरी तरह राज्यशक्तिकी कूटनीतिमे पड़ जाना हमको अखरता है। हम चाहते है कि राजनीतिके दांव-पेचको छोडकर वह स्थायी शान्तिके लिए प्रयत्नशील हो । शान्तिका पथ पर स्थायी शान्ति फौजी, प्रबन्ध प्रभावक्षेत्र और हवाई अड्डोसे नही कायम होती। वह तो इस वदलते हुए युगमे अव पुराने तरीकोसे नही कायम होगी। नये युगकी मांग कुछ और ही है, नये समाजके सामाजिक मूल्य कुछ और ही है। इनको पहचानना, इनके उपयुक्त नवीन सस्थाअोकी प्रतिष्ठा करना तथा इनके लिए मार्ग प्रशस्त करना हमारा काम होना चाहिये । आज जो प्रयत्न हो रहे है वे सव व्यर्थ है । जो मुख्य प्रश्न है उनकी जटिलताके कारण आज उनकी उपेक्षा की जा रही है और गीण प्रश्नोको प्रधानता मिल रही है । वास्तविकतापर परदा डाला जा रहा है और बुद्धिमत्ता इसीमे समझी जाती है कि कैसे दूसरोकी आँखोमे धूल झोकी जाय । स्पष्टवादिता एक बडा दुर्गुण समझा जाता है । ऐटम वमका प्रश्न मुख्य प्रश्न है । इसकी चर्चा बहुत थोड़ी होती है। वैज्ञानिकोका
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