पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४२३

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४१० राष्ट्रीयता और समाजवाद उक्त प्रस्ताव बड़े महत्त्वका है। हमको स्मरण रखना चाहिये कि यह सम्मिलित पार्टीका निश्चय है । अत स्थानीय कम्युनिस्ट पार्टी भी इस प्रस्तावमे निर्दिष्ट किये गये सिद्धान्तोको स्वीकार करती है और यह भी मानना होगा कि सोवियत रूसकी इस प्रस्तावपर मुहर है। किन्तु ये सिद्धान्त अवतक कम्युनिस्टोको मान्य नही रहे है। इन्हीके न माननेसे यूरोपमे समाजवादियो और कम्युनिस्टोमे एकता नही हो पायी है और मजदूर-अान्दोलनमें फूट पडती रही है । इस प्रस्तावमे एक सिद्धान्त यह निरूपित किया गया है कि प्रजातान्त्रिक मार्गद्वारा ही समाजवादकी स्थापना करना हमारा लक्ष्य होना चाहिये और हिंसाका प्रयोग तभी करना चाहिये जब पूर्वोक्त मार्गपर चलना पूंजीपतियोद्वारा असम्भव कर दिया जाय । किन्तु अबतककी नीतिका आधार तो यही रहा है कि हिंसाका प्रयोग अनिवार्य है और मजदूरवर्गके अधिनायकत्वके बिना समाजवादकी स्थापना असम्भव है । वैधानिक ढगसे समाजवाद प्रतिष्ठित हो सकेगा, इसकी कल्पना कम्युनिस्टोने कभी नही की थी। दूसरा महत्त्वका सिद्धान्त यह है कि पार्टी आत्मनिर्भर और स्वतन्त्र होगी। अर्थात् दूसरे शब्दोमे वह मास्कोका मुंह न ताकेगी, उसके इशारेपर नही चलेगी और उसकी वैदेशिक नीतिका पुछल्ला नही बनेगी । पुनः उसकी नीति अपने देशकी जनताके हितोंको ध्यानमे रखकर ही और उसकी विशेष स्थितिपर विचार करके ही निश्चित होगी, किन्तु आजतक तो इसके प्रतिकूल ही आचरण हुआ है । अपनी नीतिके निश्चित करनेकी स्वतन्त्रता कम्युनिस्ट पार्टियोको कही भी नही रही है और वे सदा सोवियत रूसके इशारेपर और उसीके राष्ट्रीय हितोको प्रधान मानकर काम करती रही है । समाजवादियो और कम्युनिस्टोके बीच विवाद का यह मुख्य विषय रहा है । तीसरा सिद्धान्त जिसका हम उल्लेख करना चाहते है पार्टीका वह निश्चय है जिसके अनुसार उसकी आन्तरिक व्यवस्था सम्पूर्ण रूपसे प्रजातान्त्रिक होगी। अवतक जनतान्त्रिक केन्द्रीकरण ( democratic centralism ) का सिद्धान्त मान्य था, जो विगड़ते- विगड़ते एक अधिनायकत्वके सिद्धान्तके रूपमे परिणत हो गया । ट्राटस्कीके शब्दोमें “पार्टीका सगठन पार्टीका ही स्थान ले लेगा, केन्द्रीय समिति संगठनका स्थान ले लेगी और अन्तमे अधिनायक केन्द्रीय समितिका स्थान ले लेगा।' इस सम्बन्धमे ट्राटस्कीने एक स्थानपर लिखा था कि ऐसा अनुमान करनेका लोभ संवरण करना शायद कठिन है कि स्टालिनिज्मका मल वोलशेविकोके केन्द्रीय नियन्त्रणके सिद्धान्त ( Centralism ) में निहित है। विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या कम्युनिस्ट पार्टीके सिद्धान्तोमे इधर कुछ ऐसा हेर-फेर हुअा है अथवा अपनी अवसरवादिताके सिद्धान्तके अनुसार सोशल डेमोक्रेटोकी शंकाके निवारणार्थ तथा उनको एकताके लिए प्रोत्साहित करनेके लिए ही उक्त पार्टीके कार्यक्रममें इन सिद्धान्तोको प्रविष्ट किया गया है। जिस प्रकार अमेरिकाके प्राक्षेपोंको दूर करनेके लिए जिससे वह पूरी तरह युद्धमे सहायता प्रदान करे, तृतीय इण्टरनेशनलके तोड़नेका स्वांग रचा गया और सोवियत रूसके अनेक गिर्जे खोल दिये गये, धर्म-स्वातन्त्र्यकी घोपणा की गयी तथा धर्माचार्यका पादर-सत्कार किया गया, क्या उसी प्रकार अपनी शक्तिको