पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४३

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३० राष्ट्रीयता और समाजवाद उसने एक जबर्दस्त सघ स्थापित किया । जापानको भी इस संघमें सम्मिलित करनेकी उसने चेष्टा की और प्रारम्भमें उसको इस प्रयत्नमे सफलता भी प्राप्त हुई। साम्राज्य- वादसे छुटकारा दिलानेके लिए रूसने चीनकी भी अच्छी सहायता की । एणियाके लोगोमे भ्रातृभाव स्थापित करने तथा साम्राज्यवादकी भीपणता बतलानेके लिए उसने समय-समयपर कान्फरेन्सोका आयोजन किया । इन विविध चेप्टायोका यह फल हुया कि १९२०के बादसे ही ग्रेट ब्रिटेनका प्रभाव एशियामे बहुत कम होने लगा । अफगानि- स्तानने स्वतन्त्रता प्राप्त की। १६२१में फारसमे राज्य-क्रान्ति हो गयी। तुर्कोने अपनी तलवारके जोरसे २४ जुलाई १९२३को लोसानकी कान्फरेन्समे सेरेकी अपमान- जनक सन्धिको बदलवा दिया। अगोरामे प्रजातन्त्र शासनकी स्थापना हुई । रूसकी राज्य-क्रान्तिका सबसे बडा फल यह हुआ कि साम्यवादकी विचारधारासे एशियाके देश प्रभावित होने लगे । साम्यवादके सिद्धान्तोके अनुसार मजदूर-अान्दोलनका नये ढगसे सङ्गठन शुरू हो गया। मजदूर और किसान राजनीतिमे ज्यादा दिलचस्पी लेने लगे। साम्राज्यवादका विरोध करनेके लिए एशियाके राष्ट्रोका एक संघ स्थापित करनेकी चेष्टा हुई । 'पेन एशियाटिक लीग' नामकी सस्था कायम की गयी जिसका प्रथम अधिवेशन तोकियो (जापान) मे हुआ । देशवन्धु चित्तरजनदास भी ऐसा ही एक सघ स्थापित करना चाहते थे और उनकी यह इच्छा थी कि उसका एक अधिवेशन भारतमे किया जाय, परन्तु वे अपने इस विचारको कार्यमे परिणत न कर सके। युद्धके कारण यूरोपीय सभ्यताके प्रति जो आदरका भाव था वह भी जाता रहा । जव एशियाके लोगोने देखा कि यूरोपके राष्ट्र अपने झगड़ोको शान्ति-पूर्वक नहीं तय कर सकते और अपने स्वार्थ-लाभके लिए लाखो मनुष्योंकी हत्या करनेसे नहीं हिचकते तथा एक दूसरेका संहार करनेके लिए विज्ञानका दुरुपयोग करते है तब उनको यूरोपको भौतिक सभ्यताके प्रति घृणा हो गयी। इस युद्धमे यूरोपीय राष्ट्रोको उपनिवेशोसे काली सेनाको भी बुलाना पड़ा था। अंग्रेजी और फ्रांसीसी सिपाहियोके साथ हिन्दुस्तानी सिपाही फ्रांसके कई मैदानोमे जर्मनोसे लडे थे। हम ऊपर कह चुके है कि अखिल भारतवर्षीय कांग्रेस-कमेटीने अपनी जिम्मेदारीपर सत्याग्रह शुरू करनेकी इजाजत दे दी थी। सरकारको दमन-नीतिने वहुत जल्द कुछ प्रान्तोको आत्म-रक्षामे सत्याग्रह प्रारम्भ करनेके लिए विवश किया ।वर्किग कमेटीने यह निश्चय किया था कि जिस दिन प्रिस पाव वेल्स भारत आयेगे उस दिन सम्पूर्ण भारतवर्पमें हडताल रहेगी और प्रान्तीय कमेटियाँ अपने-अपने प्रान्तमें बहिष्कारका प्रवन्ध करेगी। इस निश्चयके अनुसार प्रिस आव वेल्स जहाँ-जहाँ गये वहॉ-वहाँ उनका बहिष्कार किया गया। वहिष्कारकी सफलता को देखकर सरकार आपेसे वाहर हो गयी। प्रिंस आव वेल्सके भारत आनेकी वात पहले भी कई वार उठी थी, पर वहिष्कारकी वजहसे उनका अाना स्थगित कर दिया गया था। लार्ड रीडिगने इस वार वहुत आग्रहके साथ अपनी जिम्मेवारीपर उनको भारत बुलाया था। उनका यह खयाल न था कि बहिष्कारको इतनी सफलता मिलेगी। अपने मनसूवोको सफल होते न देखकर उनके क्रोधका 1