पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४४

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भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनका इतिहास ३१ पारावार न रहा और उन्होने कांग्रेसके संगठनको छिन्न-भिन्न करनेका निश्चय किया। इस समय कांग्रेसका एक स्वयसेवक दल था । इसीके द्वारा काग्रेसका कार्य होता था। सरकारने काग्रेसके स्वयसेवक दलको गैर-कानूनी करार दे दिया। जो अपनेको काग्रेसका स्वयंसेवक कहता था या जो पुलिसकी नजरोमे कांग्रेसका स्वयसेवक समझा जाता था उसे पुलिस गिरफ्तार कर लेती थी । जिन-जिन शहरोमे प्रिस आव वेल्सका जाना हुआ वहाँ बहुत बड़ी सख्यामे काग्रेसके कार्यकर्ताओ और स्वयंसेवकोकी गिरफ्तारियाँ हुई । सयुक्त- प्रान्त और बंगालके बहुतसे नेता कैद कर लिये गये । सरकारका दमन-चक्र बड़े जोरोसे चलने लगा। इससे काग्रेसको आत्मरक्षामे सत्याग्रह करनेका एक अच्छा अवसर मिल गया। अहमदावादकी काग्रेस (सन् १९२१)ने लोगोसे अपील किया कि वे स्वयसेवक- दलोमे सम्मिलित होकर सरकारकी चुनौतीको स्वीकार करे और खामोशीके साथ अपनेको गिरफ्तार करा दे । काग्रेसने इस कार्यको प्रधानता दी और यह भी निश्चय किया कि यदि आवश्यकता हो तो कांग्रेसके अन्य कार्य स्थगित कर दिये जायँ । काग्रेसने अन्य प्रकारके सत्याग्रहकी तैयारी करनेकी भी सलाह दी। महात्माजीको अखिल भारतवर्षीय काग्रेस कमेटीके समस्त अधिकार दे दिये गये । महात्माजीने सबसे पहले वारडोली ताल्लुकेमे सामूहिक रूपसे सत्याग्रह प्रारम्भ करनेका विचार किया था। वारडोली ताल्लुकेके लोग तैयारीमे लगे हुए थे, लेकिन चौरीचौराकी घटनाके कारण महात्माजीको सत्याग्रहका विचार कुछ समयके लिए स्थगित कर देना पड़ा । ११-१२ फरवरी १९२२को वारडोलीमें वकिंग कमेटीकी जो वैठक हुई थी उसने काग्रेस कमेटियोको आदेश दिया कि वे सरकारी आज्ञाका विरोध करनेके लिए स्वयसेवकोके जुलूस न निकाले और सभाएं न करे और जवतक देशमे शान्ति और अहिसाका वायुमण्डल फिरसे स्थापित नही हो जाता तवतक केवल रचनात्मक कार्यमे ही संलग्न रहे । काग्रेसको यह सूचना मिली थी कि कही-कही रैयत जमीदारको लगान नही दे रही है । इसलिए वर्किग कमेटीने काग्रेस-कार्यकर्तामोको यह सलाह दी कि वे किसानोको इत्तला कर दे कि जमीदारोको लगान अदा न करना कांग्रेसके प्रस्तावोके विरुद्ध है । वर्किङ्ग-कमेटीने जमीदारोको भी इत्मीनान दिलाया कि काग्रेस उनके जायज हकोपर किसी प्रकारका आक्रमण करना नही चाहती । सयुक्त- प्रान्तके जमीदारोको आश्वासन दिलानेके लिए यह प्रस्ताव स्वीकृत हुआ था। अवधके करीब-करीब हर जिलेमे किसान-सभाअोका अच्छा संगठन हो गया था। वे भी बारडोली की भाँति लगान-वन्दीका आन्दोलन शुरू करना चाहते थे। काग्रेसके नेताओने एक वर्पके भीतर स्वराज्य स्थापित करनेका वादा किया था। वह वर्ष भी बीत गया। वाज- वाज किसान यह समझने लगे कि स्वराज्यकी स्थापना होनेपर हमको लगान न देना पडेगा, लेकिन महात्माजी जमीदार और किसानकी लड़ाई नही चाहते थे। वे देशकी सारी ताकतको सरकारके खिलाफ लगाना चाहते थे। वे केवल ऐसे ही स्थानोमे लगान- वन्दी शुरू करनेकी इजाजत देनेको तैयार थे जहाँके किसान सरकारको वराह-रास्त लगान अदा करते थे। लेकिन जब उनको खबर लगी कि सयुक्तप्रान्तमे जगह-जगह किसानोने लगान देना बन्द कर दिया है और चौरीचौराके हत्याकाण्डसे उनको निश्चय हो गया कि