पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४३८

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हिन्द चीन और कम्युनिस्ट पार्टी ४२५ मार्ग दिखावेगे जिससे संसारका व्यथित हृदय शान्ति प्राप्त करेगा और राष्ट्र-राष्ट्रके वीच सौहार्द तथा भ्रातृत्वका सम्बन्ध स्थापित होगा । हिन्द चीन और कम्युनिस्ट पार्टी 'न्यूज वीक' नामक अमेरिकन पत्रके युद्ध-सम्वाददाता श्री हेरल्ड प्राइजैक्स (Harold Isaacs) सन् १९४५ मे हिन्द-चीन गये थे । उनकी लिखी हुई 'नो पीस फार एशिया' नामक पुस्तक अभी प्रकाशित हुई है, इसमे उन्होने हिन्द-चीनके स्वतन्त्रता-सग्रामका रोचक वर्णन दिया है । लेखकका कहना है कि "वियत नाम' रिपब्लिक फेच साम्राज्यवादके मुकावलेमे कमजोर है, क्योकि वह विलकुल अकेली पड़ गयी है। उसके पीछे जनताकी शक्ति अवश्य है और वह स्वतन्त्र होनेका दृढ़ निश्चय रखती है तथा उसको इसका दृढ़ विश्वास है कि उसका पक्ष न्यायसंगत है । यह जनताकी बहुमूल्य सम्पित्ति है, किन्तु अाजके राजनीतिक बाजारमे इससे कुछ खरीदा नही जा सकता। ." "वियत नाम' का काम केवल स्वतन्त्रताकी प्राप्तिसे नही चल सकता । उसको दूसरोकी सहायताकी आवश्यकता है । उसको एक ऐसे ससारका अंग बनना पड़ेगा जो उसको अपनी आवश्यकताओको पूरा करनेके लिए अपने साधनका पुन संगठन करने दे । यदि ऐसा संसार उसको नहीं मिलता तो कमसे कम कोई ऐसा शक्तिशाली मिन तो हो जिसपर वह -भरोसा कर सके। "चीनियोपर तो अब वह भरोसा कर नही सकता। रूसियोका क्या हाल है ? क्या वह हिन्द-चीनको राजनीतिक सहायता पहुँचावेगे, मुझे तो कोई ऐसा अनम-निवासी ( Annamite ) नही मिला जिसका ऐसा विचार हो । मै अनेक कम्युनिस्टोसे भी मिला । यह भी अपने साथी राष्ट्रवादियोकी तरह ही निराश ही थे । रूसियोके सम्वन्धमे वह अपने विचार नि.संकोच होकर प्रकट करते थे, उनमेसे जो वडे कट्टर किस्मके कम्युनिस्ट थे वह भी, जैसे ड्रान वान गिनायो ( Dran Van Giau ), यह स्वीकार करते थे कि रूसियोने अपने सिद्धान्तो और विचारोके मामलेमे बहुत ज्यादा ढील दे दी है और समझौते किये हैं । ड्रानका कहना था कि रूसियोसे अनमको किसी प्रकारकी सहायताकी आशा न रखनी चाहिये । एक-दूसरे अनम-निवासी कम्युनिस्टने कुछ कटुताके साथ यह कहा कि रूसी सवसे पहले और सर्वोपरि रूसी राष्ट्रवादी है । वह हममे तभी दिलचस्पी लेगे जव हमसे उनका कुछ काम निकले । हमारा यह दुर्भाग्य है कि तत्काल हमसे उनका कुछ काम नही निकलता। "मैंने उससे पूछा कि फासीसी कम्युनिस्टोका क्या हाल है । उसने एक नफरतकी साँस ली और कहा कि फ्रेच कम्युनिस्ट पहले फ्रासीसी है और उपनिवेशोपर फ्रेच-शासन वनाये रखनेके पक्षमे है और पीछे कम्युनिस्ट है। सिद्धान्त रूपमे वह हमारे पक्षका समर्थन १. 'जनवाणी' मार्च, सन् १९४७ ई०