४२४ राष्ट्रीयता और समाजवाद विकासके लिए विदेशसे पूंजी लेनी पड़ेगी। किन्तु कुछ शर्तोंके साथ ही विदेशी पूंजी लेनी चाहिये जिसमें अपने आर्थिक जीवनपर विदेशियोका नियन्त्रण न हो सके। सम्मेलनके कार्यको स्थायी रूप देनेके लिए एक संगठनका निर्माण किया गया है । इसका नाम एशियाई सम्बन्ध संघ होगा और इसके उद्देश्य इस प्रकार होगे- (क) समूचे एशिया और संसारके साथ उनके सम्बन्धके दृष्टिकोणसे एशियाई समस्याअोके अध्ययन तथा ज्ञानकी अभिवृद्धिका प्रयत्न । (ख) एशियावासियोमें आपसमे तथा एशिया और शेष संसारके वीचमे मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध तथा सहयोगकी स्थापनाके लिए कार्य । (ग) एशियावासियोकी उन्नति एव कल्याणके लिए प्रयत्न । इस उद्देश्यकी पूर्ति के लिए एक अस्थायी साधारण समितिकी स्थापना की गयी है । एशियाके प्रत्येक देशमे संघकी शाखाएँ होगी। सघकी शाखामोका रूप गैरसरकारी होगा और उनके उद्देश्य संघसे मिलते-जुलते होंगे। संघ और उसकी शाखाएँ एशियाई तथा अन्तर्राष्ट्रीय समस्याग्रोका अध्ययन करेगी, किन्तु उनका दल विशेपसे सम्बन्ध न होगा और न वे राजनीतिक प्रचारमे लगेगी। सम्मेलनका अगला अधिवेशन चीनमे सन् १९४६ मे होगा। इस संगठनके प्रथम सभापति पं० जवाहरलाल नेहरू होगे। यह कहना अत्युक्ति न होगी कि एशियाके लिए यह घटना बड़े महत्त्वकी है। प्राचीन कालमे जव यातायातकी सुविधाएँ न थी भारतवासी अपने पड़ोसी राष्ट्रोसे सांस्कृतिक तथा व्यापारिक सम्बन्ध रखते थे; एक समय था जब मध्य एशि लेकर ण-पूर्व एशियाके द्वीपोतक तथा चीन, जापान, कोरिया और मंगोलियामे भारतीय संस्कृतिका प्रचुर प्रसार तथा प्रभाव था । भारतीय भाषा, लिपि, कला, दर्शन और धर्मका अक्षुण्ण प्रभाव इस विशाल भूखण्डपर था । यहाँ एक समय सस्कृतका आधिपत्य था । यह हमारा उज्ज्वल काल था। ६ वी १० वी शतीमे भी जब भारतकी अवनति द्रुतिगतिसे हो रही थी हम अपना सस्कृति-सम्बन्ध चीन, तिव्वत आदि देशोसे बनाये हुए थे, किन्तु जब रेल, तारकी सुविधाएँ हमको प्राप्त है, हमारा यह पुराना सम्वन्ध छिन्न-भिन्न हो गया है । आज हम अपने पड़ोसियोके सम्बन्धमे बहुत कम जानकारी रखते है । आज यूरोपका हमारे जीवनपर प्रभुत्व पाया जाता है। उसकी पूँजीवादी, अर्थनीति ससारपर छायी हुई है । उसकी विचारधारा और उसका इतिहास हमको विशेषरूपसे प्रभावित करता है । इस अप्राकृतिक स्थितिको बदलनेकी चेष्टा दो बार पहले भी काग्रेसके नेताअोद्वारा की गयी थी, पर यह सब प्रयत्न विदेशी गवर्नमेण्टने व्यर्थ कर दिये । किन्तु अव एशियाके लोगोको दवाकर नहीं रखा जा सकता । यह शुभ प्रयत्न शुभ घडीमें हो रहा है । सम्मेलनका भविष्य उज्ज्वल है, क्योकि यह हमारी एक बडी आवश्यकता- की पूर्ति करता है। हम आशा करते है कि एशियाके सब देशोके सम्मिलित उद्योगसे हमारा वह पुराना सम्बन्ध फिरसे शीघ्र स्थापित होगा और एशियावासी ससारको एक नया
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