पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४४०

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अमेरिकाका नया साम्राज्यवाद ४२७ यूरोपके देशोकी समाजवादी और कम्युनिस्ट पार्टियोके साथ हमारा सहयोग नहीं हो सकता । इसका कारण यह है कि यूरोपकी यह विधि पार्टियाँ या तो सोवियत रूसके आदेशपर काम करती है या स्वयं अपने-अपने साम्राज्यका सर्वथा परित्याग करनेके लिए तैयार नहीं हैं। एशियाके जो देश आज अपनी स्वतन्त्रताके लिए लड रहे है, उन देशोकी समाजवादी पार्टियोका एक सम्मेलन होना आवश्यक है । इससे एक दूसरेको प्रोत्साहन और वल मिलेगा। इस सम्मेलनमे सवके स्वार्थ और हित परस्पर-विरोधी न होगे और न कोई एक पार्टी दूसरेको दवा सकेगी, जिनके उद्देश्य और हित समान है, जिनकी विचार-धारा एक है और जो एक दूसरेके साथ समानताका व्यवहार करनेको तैयार है, उन्हीका एक सम्मेलन होना चाहिये । 'हिन्द-चीनकी अवस्थाने ऐसे सम्मेलनकी अावश्यकताको और भी महत्त्व दे दिया है। हम अकेले है, हमारा कोई साथी नहीं है, यह भाव हिन्द-चीनके समाजवादी नेताअोके दिलसे दूर कर देना चाहिये, एशियाई कानफरेन्सके अवसरपर इसकी कुछ चर्चा हुई थी। हम आशा करते है कि सोशलिस्ट पार्टी एशियाके समाजवादियोका सम्मेलन बुलानेकी आयोजना करेगी। अमेरिकाका नया साम्राज्यवाद प्रेसिडेण्ट ट्रमन (Truman) की नीति एक नये साम्राज्यका निर्माण करना है और वह इस साम्राज्यकी सीमाएँ ऐसी चाहते है जिनसे मध्यपूर्वका तेल अमेरिकाके लिए सुरक्षित रहे। वह देखते है कि ब्रिटिश साम्राज्यका अन्त हो रहा है और भविष्यमे ब्रिटेन प्रथम श्रेणीकी शक्ति नही रह जायगा । जिन जगहोको ब्रिटेन खाली कर रहा है उनको अमेरिका भरना चाहता है । अमेरिकाको भय है कि यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो इन स्थानोमे सोवियत प्रभाव वढेगा । अवतक ब्रिटेन भूमध्यसागरकी एक शक्ति रहा है । अव अमेरिका उसका स्थान ले रहा है। मध्यपूर्वके तेलके चश्मोपर अमेरिकाकी नजर है । ईरानसे लेकर फिलिस्तीनके वन्दरगाहोतक तेलका विस्तृत क्षेत्र है । इसका अमेरिकाके लिए वडा महत्त्व है । इसके लिए अमेरिकाको ग्रीसकी राजनीतिमे अपना हाथ रखना पड़ता है। वह रूसको अपना प्रतिद्वन्द्वी समझता है । वह समस्त संसारपर अपना प्रभुत्व जमाना चाहता है। साम्राज्यशाही मनोवृत्तिका परितोप थोडेसे नही होता है। अपनी असीम शक्तिकी अमेरिकाको चेतना है । उसने अपनी पुरानी उदासीनताको तिलाञ्जलि दे दी है । जहाँतक अमेरिका और रूसकी विचारवाराका प्रश्न है दोनो एक दूसरेके विरोधी है। दोनो राज्योकी अर्थनीति और रामाजनीतिमे अापसका संघर्ष है । अमेरिका सदासे ही 'कम्युनिज्म' का विरोधी रहा है। किन्तु इधर यह विरोघ वहुत वढ गया है । अाज तो प्रेसिडेण्ट टू मनके हुक्मसे अमेरिकामे सरकारी नौकरियोसे कम्युनिस्टोकी छंटनी १ “जनवाणी' मई, सन् १९४७ ई०