४२८ राष्ट्रीयता और समाजवाद हो रही है। सरकारी कर्मचारियोकी राज्यनिष्ठाकी जांच हो रही है। जिस संस्थाके सम्वन्धमें अटर्नी जनरल यह सम्मति दे कि यह फासिस्ट या कम्युनिस्ट है उस संस्थाके सदस्य सरकारी मुलाजमत नही कर सकते । ऐसी सस्थाअोकी सूची प्रकाशित नहीं की जायगी और इस प्रकार इन संस्थानोको अपनी सफाई देनेका अवसर नही मिलेगा। अमेरिकाके बाहर जहाँ कही उसको कम्युनिस्टोके प्रभावके वढनेकी आशका होती है वहाँ हस्तक्षेप करना चाहता है । ग्रीस और तुर्कीको धन और युद्ध-सामग्रीसे सहायता देनेका यही रहस्य है । चीनमे कम्युनिस्टोके भयके कारण ही कुप्रोमिंतागको सहायता दी जा रही है। चीन और जापान तो एक प्रकारसे उसकी सरहद है । इनपर वह किसीकी वक्र दृष्टि नही बर्दाश्त कर सकता । पैसिफिकके कई द्वीप उसने प्राप्त कर लिये है और इनमे वह अपने फौजी अड्डे बना रहा है । यही क्या, भावी युद्धमे चीन और जापानतक उसके अड्डे बन जायेंगे । अफ्रीकाका महाद्वीप भी उसकी नजरसे नही बच पाया है । इसमे सन्देह नही कि 'अमेरिकाकी शती' का प्रारम्भ हो गया है । किन्तु यह शती संसारके कल्याणके लिए नही होगी। वस्तुतः अमेरिकाके वढते हुए प्रभावसे ससारका अमंगल ही होगा। आज अमेरिका सर्वत्र प्रतिक्रियाका ही समर्थन कर रहा है । ग्रीसके राजवंश और वहाँकी नृशस और दुराचारी गवर्नमेण्टकी धन और युद्ध-सामग्रीसे सहायता करना प्रतिक्रिया का समर्थन करना नही है तो क्या है ? अमेरिकाकी सहायतासे ग्रीसकी वह शक्तियाँ और संस्थाएँ जो लोकतन्त्रके पक्षमे है शासनको अपने हाथमे ले सकती है। किन्तु अमेरिकाके नायक इसके लिए तैयार नहीं है, क्योकि उनका कहना है कि यह आन्तरिक मामलोमे हस्तक्षेप करना होगा । ग्रीसके उत्तरी भागमे जो विद्रोह हो रहा है उसके दवानेमे अमेरिकन विशेपज्ञोंकी सहायतासे ग्रीसकी आर्थिक अवस्थामे भी सुधार होगा । किन्तु इन उपायोसे लोकतन्त्रको जो क्षति पहुँचेगी उसका अनुमान नही किया जा सकता । साथ-साथ कम्युनिस्टोका प्रभाव भी बढेगा । जब राजकी पुलिस और फौज जनतापर अत्याचार करेगी तो निरुपाय होकर जनता उन्ही कम्युनिस्टोकी शरणमे जायेगी जिनके प्रभावको कम करनेके लिए इन उपायोका अवलम्ब लिया जा रहा है । अमेरिकाकी ओरसे सवलोग सशंक हो गये है और कोई यह विश्वास नही करता कि यह सहायता नि स्वार्थ भावसे दी जी रही है। इसलिए जो कोई इस गवर्नमेण्टका साथ देगा वह जनताका विश्वास खो वैठेगा । उसे लोग 'रायलिस्ट' या फासिस्ट समझेगे । यदि ग्रीसकी सहायता करनेमे कोई राजनीतिक कारण न होता तो अमेरिका युगोस्लावियाकी भी अन्नसे सहायता करता, पर युगोस्लाविया रूसके प्रभावमे है और इसलिए वह सहायता पानेका अधिकारी नही है । पहले युद्धके बाद भी अमेरिकाने इसी आधारपर यूरोपके देशोको सहायता दी थी और आज अब 'अमेरिकाकी शती, का सूत्रपात हो गया है तब तो इस आधारपर काम करनेका और भी कारण है। इसी प्रकार अमेरिकाने तुर्कीको सहायताका वचन दिया है। वह रूसको भूमध्य- सागरकी अोर वढनेसे रोकना चाहता है । तुर्कीका शासन भी लोकतन्त्रके आधारपर नही है। वहाँ एक प्रकारका सामन्तशाही अधिनायकत्व है, पर अमेरिकाने ब्रिटेनकी
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