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पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४४३

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४३० राष्ट्रीयता और समाजवाद प्रत्येक भाग अपने ढंगसे काम करना चाहता है । ऐसी अवस्थामें जिस उद्देश्यसे यह संगठन बनाया गया था वह विफल हो रहा है। यद्यपि ब्रिटेनमें मजदूर पार्टीकी गवर्नमेण्ट है और वह साम्राज्यका परित्याग करता जाता है,तथापि उसका जो सम्बन्ध रूससे है और रूसका जो सम्बन्ध अमेरिकासे है उसके कारण वह भी मध्यपूर्वपर दांत लगाये बैठा है । जब ब्रिटेन मिस्र और भारतको छोड़ रहा है और जर्मनी और जापान बहुत समयके लिए पंगु हो गये हैं तब भूमध्यसागरपर अपना नियन्त्रण कायम रखनेका प्रयत्न करना कुछ समझमे नहीं पाता । इसका एक ही कारण हो सकता है और वह यह कि ब्रिटेन इस क्षेत्रमे रूसको घुसने देना नहीं चाहता। इसीलिए अग्रेज ग्रीस नही छोड़ते और अरब लीग ऐसी प्रतिगामी संस्थाका संरक्षण करते है। ईराक, गाम और नज्दमे अंग्रेज अरव जमीदागेका साथ दे रहे है और इन्न सऊदको वार्षिक रकम देते है। बताया जाता है कि ट्रुमैनका नया सिद्धान्त अमेरिकाकी जीवनप्रणालीकी रक्षाके लिए है और इसकी आवश्यकता इसलिए है कि इस प्रणालीको अाज रूससे भय है किन्तु सत्य तो यह है कि यह सिद्धान्त घातक सिद्ध हो रहा है । यदि अमेरिकाकी जीवन-प्रणालीका आधार लोकतन्त्र और स्वतन्त्रता है तो अमेरिकाको संसारकी प्रगतिशील शक्तियोंका नेतृत्व करना चाहिये । किन्तु इसके विपरीत हम देखते है कि वह सर्वत्र प्रतिक्रियाका समर्थन करता है। यदि 'कम्युनिज्म' के विस्तारको रोकना ही उद्देश्य है तो इसका यह तरीका नहीं है । यह मानना पड़ेगा कि अाज यूरोप और एशियाके आर्थिक जीवनमें क्रान्ति हो रही है । इसके साथ योग देनेसे, न कि इसका विरोध करनेसे, अमेरिकाका उद्देश्य सफल हो सकता है । किन्तु क्रान्तिसे सहयोग करनेका अर्थ होता है यूरोपमे समाजवादका समर्थन करना और पुराने प्रतिगामी और लोकतन्त्र-विरोधी शासनोका अन्त करना । किन्तु वास्तविकता यह है कि लोकतन्त्र और स्वतन्त्रताके नामपर एक नये साम्राज्य- वादका जन्म हो रहा है । युद्धके समाप्त होनेपर सबको अमेरिकासे बड़ी अशाएँ थी। लोग समझते थे कि अमेरिकाकी सहायतासे सब जगह लोकतन्त्र शासनकी स्थापना होगी और अटलाण्टिक चार्टरके सिद्धान्तोके अनुसार काम होगा। किन्तु जव यूरोपके राष्ट्रोने अपने औपनिवेशिक साम्राज्यकी रक्षाके हेतु एशियामें अपनी सेनाएँ भेजी तो अमेरिकाने इसका विरोध नहीं किया । जर्मनीमे वह नाजीवादका उन्मूलन न कर सका । उसने यू० एन० आर० आर० ए० मे भाग लिया। किन्तु पीछे उसने उसका गला घोट दिया और यूरोपके भूखे-नंगोंकी सहायता इस शर्तके साथ की कि वह उन शासकोका समर्थन करेंगे जिन्हें अमेरिका पसन्द करता है । यू० एन० प्रो० का अन्त हो रहा है और संसारकी शान्ति खतरेमे है । संघर्ष अनिवार्य होता जाता है । प्रत्येक युद्धके समय यही कहा जाता है कि यह युद्ध लोकतन्त्रके लिए लड़ा जाता है, किन्तु देखनेमे यही आता है कि प्रत्येक युद्धके पश्चात् नये साम्राज्यवादका