पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४४२ राष्ट्रीयता और समाजवाद करता था। किन्तु जव पुरातत्त्व विभागमे स्थान न मिला, तब इस विचारसे कि वकालत करते हुए मैं राजनीतिमे भाग ले सकूँगा, मैंने कानून पढा । सन् १९१५ मे मैं एल० एल० वी० पास कर वकालत करने फैजावाद आया। मेरे विचार प्रयागमे परिपक्व हुए और वही मुझको एक नया जीवन मिला। इस नाते मेरा प्रयागसे एक प्रकारका आध्यात्मिक सम्बन्ध है। मेरे जीवनमे सदा दो प्रवृत्तियाँ रही है;-एक पढ़ने-लिखनेकी पोर, दूमरी राजनीतिकी योर । इन दोनोमे नंघर्प रहता है । यदि दोनोकी मुविधा एक साथ मिल जाय तो मुझे बड़ा परितोप रहता है और यह सुविधा मुझे विद्यापीठमे मिली। इसी कारण वह मेरे जीवनका सबसे अच्छा हिस्सा है जो विद्यापीठकी सेवामे व्यतीत हुआ और आज भी उसे मै अपना कुटुम्ब समझता हूं। सन् १९१४ मे लोकमान्य मण्डाले जेलसे रिहा होकर आये और अपने सहयोगियोंको फिरसे एकत्र करने लगे । श्रीमती वैसेण्टका उनको सहयोग प्राप्त हुआ पीर होमल्ल लीगकी स्थापना हुई। सन् १९१६ मे हमारे प्रान्तमे श्रीमती वेसेण्टकी लीगकी स्थापना हुई । मैंने इस सम्वन्धमे लोकमान्यसे बातें की और उनकी लीगकी एक शाखा फैजावादमें खोलना चाहा । किन्तु उन्होने यह कहकर मना किया कि दोनोके उद्देश्य एक है, दो होनेका कारण केवल इतना है कि कुछ लोग मेरे द्वारा कायम की गयी किसी संस्थामे शरीक नही होना चाहते और कुछ लोग श्रीमती वेसेण्टद्वारा स्थापित किसी संस्थामे नही रहना चाहते । मैने लीगकी शाखा फैजावादमे खोली और उसका मन्त्री चुना गया। इसकी ग्रोरसे प्रचारका कार्य होता था और समय-समयपर समायोका आयोजन होता था। मेरा सवसे पहला भापण अलीवन्धुअोकी नजरवन्दीका विरोध करने के लिए आमन्त्रित सभामे हुआ था। मैं वोलते हुए बहुत डरता था । किन्तु किसी प्रकार बोल गया और कुछ सज्जनोने मेरे भापणकी प्रशसा की । इमसे मेरा उत्साह वढा और फिर धीरे-धीरे संकोच दूर हो गया। मैं जव सोचता हूँ कि यदि मेरा पहला भापण विगड गया होता तो शायद मैं भाषण देने का फिर साहस न करता । मैं लीगके साथ-साथ कांग्रेसमे भी था और बहुत जल्दी उसकी सव कमेटियोमे विना प्रयत्नके पहुँच गया। महात्माजीके राजनीतिक क्षेत्रमें आनेसे धीरे-धीरे कांग्रेसका रूप वदलने लगा । प्रारम्भमे वह कोई ऐसा हिस्सा नहीं लेते थे। किन्तु सन् १९१९ से वह प्रमुख भाग लेने लगे। खिलाफतके प्रश्नको लेकर जव महात्माजीने असहयोग आन्दोलन चलाना चाहा तो असहयोगके कार्यक्रमके सम्बन्धमे लोकमान्यसे उनका मतभेद था। जून १९२० मे काशीमे ए० आई० सी० सी० की वैठकके समय मैंने इस सम्बन्धमे लोकमान्यसे वाते की। उन्होने कहा कि मैने अपने जीवनमे कभी गवर्नमेण्टके साथ सहयोग नही किया ; प्रश्न असहयोगके कार्यक्रमका है। जेलसे लौटनेके वाद जनतापर उनका वह पुराना विश्वास नहीं रह गया था और उनका ख्याल था कि प्रोग्राम ऐसा हो जिसपर जनता चल सके । वह कौसिलोके वहिप्कारके खिलाफ थे। उनका कहना था कि यदि प्राधी भी जगहे खाली रहे तो यह ठीक है। किन्तु यदि वहाँ जगहे भर जायँगी तो अपनेको प्रतिनिधि कहकर सरकारपरस्त लोग देशका अहित करेगे ।