पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४४६ राष्ट्रीयता और समाजवाद ईमानदार होते थे तो वह उनको अपने निकट लानेकी चेप्टा करते थे। उस समय महात्माजी सोच रहे थे कि जेलमे वह इस वार भोजन नही करेगे। उनके इस विचारको जानकर महादेव भाई बड़े चिन्तित हुए । उन्होने मुझसे कहा कि तुम भी इस सम्बन्धमे महात्माजीसे वाते करो । डाक्टर लोहिया भी सेवाग्राम उसी दिन आ गये थे। उनरो भी यही प्रार्थना की गयी । हम दोनोने बहुत देरतक वाते की। महात्माजीने हमारी बात शान्तिपूर्वक सुनी, किन्तु उस दिन अन्तिम निर्णय न कर सके । बम्बईमें जब हमलोग ६ अगस्तको गिरफ्तार हो गये तो स्पेशल ट्रेनमे अहमदनगर ले जाये गये । उसमे महात्माजी, उनकी पार्टी और वम्बईके कई प्रमुख लोग थे । नेताअोने उस समय भी महात्माजीसे अन्तिम बार प्रार्थना की कि वह ऐसा काम न करे । किलेमें भी हमलोगोको सदा इसका भय लगा रहता था। सन् ४५ मे हमलोग छूटे । मै जवाहरलालजीके साथ अलमोडा जेलसे १४ जूनको रिहा हुया । कुछ दिनोंके वाद मै पूनामे महात्माजीसे मिला । उन्होने पूछा कि सत्य और अहिंसाके बारेमे अब तुम्हारे क्या विचार है ? मैंने उत्तर दिया कि मैं सत्यकी तो सदासे आराधना किया करता हूँ, किन्तु इसमे मुजको सन्देह है कि बिना कुछ हिंसाके राज्यकी शक्ति हम अंग्रेजोसे छीन सकेगे। महात्माजीके सम्बन्धमे अनेक सस्मरण है, किन्तु समयाभावसे हम इससे अधिक कुछ नही कहते । इधर कई वर्षसे काग्रेसमे यह चर्चा चल रही थी कि काग्रेसमें कोई पार्टी नही रहती चाहिये । महात्माजी इसके विरुद्ध थे। देशके स्वतन्त्र होनेके बाद भी मेरी यह राय थी कि अभी कांग्रेससे अलग होनेका समय नहीं है, क्योकि देश सकटसे गुजर रहा है । सोशलिस्ट पार्टीमें इस सम्बन्धमे मतभेद था। किन्तु मेरे मित्रोने मेरी सलाह मानकर निर्णयको टाल दिया। मैने यह भी साफ कर दिया था कि यदि कांग्रेसने कोई नियम ऐसा बना दिया जिससे हमलोगोका काग्रेसमे रहना असम्भव हो गया तो मै सबसे पहले काग्रेस छोड दूंगा। कोई भी व्यक्ति जिसको आत्मसम्मान का ख्याल है,ऐसा नियम बननेपर नही रह सकता। यदि ऐसा नियम न बनता और पार्टी काग्रेस छोडनेका निर्णय करती तो यह तो ठीक है कि मैं आदेशका पालन करता, किन्तु मै यह नहीं कह सकता कि मै कहाँतक उसके पक्षमे होता । काग्रेसके निर्णय के बाद मेरे सव सन्देह मिट गये और अपना निर्णय करनेमे मुझे एक क्षण भी न लगा। मेरे जीवनके कठिन अवसर जिनका मेरे भविष्यपर गहरा असर पड़ा है, ऐसे ही हुए है। इन मौकोंपर, घटनाएँ, ऐसी हुई कि मुझे अपना फैसला करनेमे कुछ देर न लगी। इसे मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ। मेरे जीवन के कुछ ही वर्प रह गये है। शरीर-सम्पत्ति अच्छी नही है । किन्तु मनमे अब भी उत्साह है । सदा अन्यायसे लडते ही बीता। यह कोई छोटा काम नही है । स्वतन्त्र भारतमें इसकी और भी आवश्यकता है। अपनी जिन्दगीपर एक निगाह दालनेसे मालूम होता है कि जब मेरी अखे मुदेगी, मुझे एक परितोष होगा कि जो काम