पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४६०

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जनसाधारण और सरकारके आदर्श ४४७ मैंने विद्यापीठमे किया है, वह स्थायी है । मै कहा करता हूँ कि यही मेरी पूंजी है और इसीके आधारपर मेरा राजनीतिक कारोवार चलता है । यह सर्वथा सत्य है । जनसाधारण और सरकार के आदर्श पंजाबको एक मार्मिक घटना थोड़े दिन हुए कि पजावकी व्यवस्थापिका सभामे माननीय रायजादा भगतरामजीने नजरबन्दीके सम्बन्धमें कुछ प्रश्न किये थे । एक नजर बन्दकी माता मृतप्राय थी। नियमानुसार वह राज-कर्मचारियोकी आज्ञाके बिना नियमित सीमाके बाहर नही जा सकता था, परन्तु मातृ-प्रेमसे प्रेरित होकर उसने इस नियमका तिरस्कार किया और अपनी माताकी रक्षाके हेतु औषधि खरीदनेके लिए निर्दिष्ट सीमाका उल्लंघन किया । यह कार्य यद्यपि साधारण दृष्टिसे प्रशसनीय था, तथापि अधिकारी-वर्गके विचारमे यह एक अपराध था और अपराधीका शासन केवल उचित तथा न्याय ही नही, वरच प्रजामे शान्ति रखनेके लिए आवश्यक भी था, अत. उसको कारावासका दण्ड दिया गया । यह प्रश्न स्वभावतः उठता है कि जिसको सर्वसाधारण प्रशसनीय तथा अनुकरणीय मानते है उसको अधिकारी- वर्ग अन्याय तथा दण्डनीय क्यो मानता है । इन दोनो दृष्टियोमे विभिन्नता क्यो पायी जाती है ? इस प्रश्नकी विवेचना करना कठिन है, तथापि हम इसका उत्तर देनेकी चेष्टा करेंगे। प्रत्येक स्टेट राज्यका एक-न-एक आदर्श होता है और जो कार्य उस आदर्शका समर्थन करता है वह स्टेटकी दृष्टिमे श्रेयस्कर समझा जाता है । परन्तु जो कार्य उस आदर्शका विरोध करता है अथवा उस आदर्शकी प्राप्तिमे कुछ सहायता नही देता वह कार्य स्टेटके मन्तव्यके अनुसार प्रशसनीय नही है और स्टेट उसकी उपेक्षा करता है । वर्तमान युगमें जिन स्टेटोका संगठन हुआ है उनका ग बहुत-कुछ एक ही प्रकारका है । एक ही प्रकारके विचार लेकर उनका जन्म हुआ है और उनके उद्देश्य तथा कार्य-प्रणालीमे न्यूनाधिक समता पायी जाती है । अतः जो बात एक स्टेटके सम्बन्धमे लागू है वह अन्य स्टेटोके सम्बन्धमे भी कही जा सकती है। आधुनिक स्टेटका एक आदर्श यह भी है कि किसी-न-किसी प्रकार अपने राष्ट्रको वृद्धि करनी चाहिये और इस उद्देश्यकी सिद्धिमे यदि परकीय राष्ट्रोको पददलित करना पडे अथवा विजातियोके जन्मसिद्धतत्व छीनने हो तो कोई हानि नही है । अपने राज्यका विस्तार हो, अपना राज्य धर्मसम्पन्न हो और अपने राज्यकी सभ्यताका प्रचार हो, चाहे इस कार्यकी सफलतामे अन्य राज्योका अनिष्ट ही सम्पादन क्यो न हो, यही वर्तमान युगके, प्राय. स्टेटोका आदर्श हो रहा है। १. 'जनवाणी' मई, सन् १९४७ ई०