पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४६४

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पूंजीवादी समाज और प्रेस ४५१ पूंजीपतियोके लिए स्वाभाविक था । इसीका फल यह हुआ कि आज कई दैनिक पत्र पूंजीपतियोने खरीद लिये है । इनके लिए नये पत्रोकी स्थापना कठिन होती है, क्योकि जनतामे इनकी साख नही है । जनता तो राष्ट्रीय विचारोका ही स्वागत करती है । इसलिए ये पुराने पत्रोको, जिनकी प्रतिष्ठा कायम हो चुकी है, खरीद लेते है और ऐसे ही सम्पादकोको नियुक्त करते है, जो राष्ट्रीय विचारके माने जाते है । इनकी नीति भी राष्ट्रीय होती है, क्योकि यदि वे ऐसा न करें तो उनका पत्न लोकप्रिय न हो । पुन राष्ट्रीय नीतिको अपनानेमे इनका हर तरहसे लाभ ही है, क्योकि उसके सफल होनेसे भारतीय उद्योग- व्यवसाय ब्रिटिश पूंजीसे स्वतन्त्र होता है और उसको प्रसारके लिए अवकाश मिलता है तथा वे जनताका सद्भाव भी प्राप्त करते है । किन्तु वे अपने पत्रोद्वारा अपने वर्गके हितोका अनेक प्रकारसे समर्थन भी करते रहते है । उग्र राजनीतिसे वे सदा घबराते रहते है और ब्रिटिश साम्राज्यसे समझौतेके अवसरोको कभी नही खोते । नेताओका आशीर्वाद प्राप्त करनेकी इनकी सदा चेष्टा रहती है और उनपर समय-समयपर ये अपना प्रभाव भी डालते रहते है । आजकल अपने देशमे कुछ प्रमुख पूंजीपतियोके अनेक पत्र है । इनको एक पत्रसे सन्तोप नही है । एक-एकके पास तीन-तीन चार-चार पत्रोकी लडी है। विडलाजी 'हिन्दुस्तान टाइम्स', 'लीडर' और 'सर्चलाइट' के मालिक है. हिन्दीमे 'हिन्दुस्तान' और 'भारत' इनके पन है । डालमिया साहव धीरे-धीरे पत्रोके मालिक होते जा रहे है । वम्बईका 'टाइम्स पाव इण्डिया' और दिल्लीका 'नेशनल काल' इन्होने खरीद लिया है । दक्षिणमे गोयनकाजीका 'इण्डियन एक्सप्रेस' और 'दिनमणि' (तामिल) है । कलकत्तासे भी 'इण्डियन एक्सप्रेस' का एक सस्करण निकलता है । दूसरे दर्जेके व्यवसायी भी, जो राजनीतिमे कुछ रस लेते है, इस ओर अग्रसर हो रहे है । सिद्दीकी साहबका मुसलिम लीगी पत्र, 'मौनिंग न्यूज' कलकत्तेसे निकलता है । उनके पास यदि पत्रोकी लड़ी नही है तो वह कमसे-कम एक पत्र तो अपना अवश्य रखना चाहते है । आजकल विना अच्छी पूंजीके दैनिक पत्र नही चल सकते । पूंजीपतियोने दैनिक-पत्रोका स्टेण्डर्ड काफी ऊँचा कर दिया है। उसमे समाचार और लेख पर्याप्त संख्यामे रहते है, मैगजीन-सेक्शन भी रहता है । यदि पुराने पन्न अपने स्टैण्डर्डको ऊँचा न करे और इन विशेषतामोको न अपनावे तो वे चल नही सकते । पूंजीकी कमीसे वह ऐसा प्राय. कर नही पाते हैं और इसलिए वे पूंजीपतियोके हाथमे चले जाते है। यह तो आजकी अवस्था है । अभी बहुत कम पत्र पूंजीपतियोके अधीन हुए है । पर ज्यो-ज्यो शिक्षाका प्रसार होता जायगा, त्यो त्यो अधिकाधिक पत्र पूंजीपतियोके हाथमे चले जायेंगे और जब देशको राजनीतिक स्वतन्त्रता प्राप्त हो जायगी, तब हमारे देशमे भी 'प्रेस मैगनेट' तैयार हो जायेंगे। उस समय पत्रोका रूप और उद्देश्य एकदम बदल जायगा। स्वतन्त्र होनेकी प्रेरणा तो रहेगी नही । नये आधारपर दलोकी सृष्टि होगी और नये प्रश्न सर्वसाधारणके सामने होगे । आर्थिक प्रश्नोका महत्त्व वढ जायगा । पूंजीपतियोके गुट अपने स्वार्थोकी पूर्तिके लिए लोकमतको तथा देशकी गवर्नमेण्टको प्रभावित करेगे। शिक्षाके प्रसारके कारण पाठकोकी सख्या नित्य वढ़ती जायगी और उनकी पिपासाकी