पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३४ राष्ट्रीयता और समाजवाद यन्त्रपर कार्य-साधक नियन्त्रण प्राप्त करना ही पूर्ण ग्रीपनिवेशिक स्वराज्य प्राप्त करना है। व्यवस्थापक-सभा सम्बन्धी कार्यके विपयमे स्वराज्य दलने अपनी यह नीति निश्चित की कि चुनावके उपरान्त स्वराज्य-दलके सदस्य व्यवस्थापक सभामे सरकारके सामने राष्ट्रकी मॉग पेश करेगे और यदि सरकारने सन्तोषप्रद उत्तर न दिया और जनताके पूर्वोत्त अधिकारको स्वीकार न किया तो स्वराज्य-दल, वहुमत होनेकी अवस्थामें व्यवस्थापक- सभामोद्वारा शासनके कार्यको असम्भव वनानेके लिए अविश्रान्त और सतत प्रतिवन्धकी नीतिका अनुसरण करेगा । बडी व्यवस्थापक-सभाके लिए केवल ४३ स्वराज्य-दलके सदस्य चुने जा सके । बर्मासे जो सदस्य चुने गये थे उनको स्वराज्य-दलके साथ सहयोग करनेका आदेश दिया गया था। इस प्रकार स्वराज्य-दलकी सख्या ४६ समझी जा सकती है। बहुमत न होनेके कारण उनको इण्डिपेण्डेण्ट-दलसे सयोग करना पडा और इस सयुक्त दलका नाम नेशनलिस्ट-पार्टी रखा गया। नेशनलिरट-पार्टीने यह निश्चय किया कि राष्ट्रीय मॉग पेश की जाय और यदि तीन-चौथाई सदस्योकी रायमे सरकारका उत्तर सन्तोप-प्रद न हो तो उस अवस्थामे नेशनलिस्ट-पार्टी प्रतिवन्धकी नीतिका अनुसरण करनेके लिए बाध्य होगी। इस निश्चयके अनुसार १८ फरवरी १९२४को नेशनलिस्ट- पार्टीकी ओरसे राष्ट्रकी मांग पेश की गयी। यह प्रस्ताव बहुमतसे पास हो गया । इस प्रस्तावद्वारा सपरिषद गवर्नर जनरलसे सिफारिश की गयी कि वह दायित्वपूर्ण शासन स्थापित करनेके लिए गवर्नमेण्ट प्राव इण्डिया ऐक्टमे आवश्यक परिवर्तन करावे और इस उद्देश्यकी पूर्तिके लिए जल्दसे जल्द एक गोलमेज-कान्फरेन्स भारतका शासन-विधान तैयार करनेके लिए आमन्त्रित करे और नयी व्यवस्थापक सभाकी स्वीकृति लेकर कानून बनानेके ब्रिटिश पार्लमेण्टके सामने इस शासन-विधानको पेश करे । सरकारने कोई उत्तर न दिया और उसका व्यवहार भी सन्तोप-प्रद न पाया गया। इसलिए प्रति- वन्ध-नीतिका प्रारम्भ किया गया। बजटकी कई मदे और फाइनेस विल नामजूर किये गये। लेकिन इण्डिपेण्डेण्ट पार्टीके सदस्य समान रूपसे निरन्तर प्रतिबन्धकी नीतिका अनुसरण करने के लिए तैयार न थे। इसलिए स्वराज्य-दल उसका सहयोग न पाकर अपनी नीतिको पूर्णरूपसे कार्यान्वित न कर सका । यद्यपि १९२३मे परिवर्तनवादी और अपरिवर्तनवादी इन दोनो दलोमे एक प्रकारका समझौता हो गया था, तथापि ये दोनो दल एक दूसरेके साथ मिलकर कार्य करनेको तैयार न थे। काग्रेसका रचनात्मक कार्य भी इस आपसके झगडेके कारण ठीक-ठीक नहीं हो सकता था । इधर जगह-जगह हिन्दू-मुसलमानोके झगडे भी शुरू हो गये थे । असहयोग आन्दोलनके समय मालावारमे जो मोपला-विद्रोह हुआ था उस अवसरपर मुसलमानोने कुछ हिन्दुओको जवरदस्ती मुसलमान बना लिया था। इस घटनासे हिन्दू बहुत व्याकुल हो गये । हिन्दुओने आत्म-रक्षाके लिए सङ्गठनका आन्दोलन शुरू किया । स्वामी श्रद्धानन्दजीने इसी समय हजारो मल्कानोकी शुद्धि बड़े धूम-धामसे की। इस शुद्धि और सङ्गठनके आन्दोलनके कारण हिन्दू-मुसलमानका झगड़ा और भी बढ गया, क्योंकि मुसलमान खुद तवलीगका काम करते है, इसलिए वह सिद्धान्त-रूपेण शुद्धि-आन्दोलनका