पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४६

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भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनका इतिहास यह खयाल था कि कौसिलोपर कब्जा कर हम सरकारके शासन-यनको बहुत-कुछ वेकार कर सकते है। लोकमान्यके अनुयायी भी कौसिलोके बहिष्कारके विरुद्ध थे। लेकिन काग्रेसके बहुमतके आगे इन सब सज्जनोको उस समय सिर झुकाना पड़ा था। वारडोलीके निश्चयके उपरान्त ऐसे सब सज्जनोकी यह धारणा हो गयी कि असहयोगके कार्यक्रममे परिवर्तन करनेकी आवश्यकता है । डाक्टर मुजे असहयोगके कार्यक्रमको अव्यावहारिक समझते थे। श्री विठ्ठलभाई पटेल इस वातको नही स्वीकार करते थे कि सामूहिक रूपमे सत्याग्रह आरम्भ करनेके लिए कभी भी उपयुक्त वायुमण्डल हो सकता है । दूसरा दल महात्माजीके अनुयायियोका था । अहिंसात्मक असहयोगके कार्यक्रममे इनका पूरा विश्वास था। इसके प्रमुख नेता श्री राजगोपालाचारी, श्री वल्लभभाई पटेल आदि थे। गया-काग्रेसमे श्री राजगोपालाचारीके दलका बहुमत था। इसलिए गया-काग्रेसने कौसिलोके वहिष्कारका निश्चय किया और कांग्रेसके कार्यकर्तामोसे अनुरोध किया कि वे कम-से-कम ५०,००० स्वयंसेवक भर्ती करे और काग्रेसके संगठनको सुदृढकर सत्याग्रह आरम्भ करनेके लिए जिस तैयारीकी आवश्यकता है उसको पूरा करे । गया-काग्रेसने सरकारी शिक्षा-संस्थानो और अदालतोके बहिष्कारको भी कायम रखा। कांग्रेसके सभापति देशवन्धु दास काग्रेसके इन निश्चयोसे सहमत न थे। इसलिए उन्होने सभापतित्वसे त्यागपत्र दे दिया । कांग्रेसमे एक पक्ष ऐसा भी था जो आपसके इन झगड़ोको पसन्द नही करता था और दोनो दलोमे किसी प्रकारका समझौता करानेकी कोशिशमे लगा था। इस आपसके झगड़ेके कारण काग्रेसका कार्य अस्त-व्यस्त हो गया था। काग्रेसके नेताप्रोमे मत-भेद होनेके कारण साधारण जनता सम्भ्रान्त हो गयी थी। लोग अपना कर्तव्य निर्धारित करनेमे अपनेको असमर्थ पाते थे, इसलिए उनकी यह स्वाभाविक इच्छा थी कि नेताअोका यह परस्परका झगड़ा शान्त हो जाय । अखिल भारतवर्षीय काग्रेस-कमेटीने मई सन् १९२३की बैठकमे यह निश्चय किया कि कौसिलोके वहिष्कार सम्बन्धी प्रस्तावके अनुसार वोटरोमे किसी प्रकारके प्रचारका कार्य न किया जाय । इस निश्चयके होनेपर वर्किङ्ग कमेटीके छ. सदस्योने त्यागपत्र दे दिया। कमेटीने इन सज्जनोसे अपने त्यागपत्न- पर फिरसे विचार करनेका आग्रह किया, पर जब उन्होने ऐसा करनेमे अपनी असमर्थता प्रकट की तो कमेटीको त्याग-पत्रोको स्वीकार करना पडा । कौसिलोके बहिष्कारके प्रश्नपर विचार करनेके लिए काग्रेसका एक विशेष अधिवेशन दिल्लीमे आमन्त्रित किया गया। इस अधिवेशनमे कौसिलोके बहिष्कारका प्रस्ताव स्थगित कर दिया गया और काग्रेसके सदस्योको कौसिलोके निर्वाचनमे खडे होने तथा मत देनेकी स्वतन्त्रता दे दी गयी । देशबन्धु दासके नेतृत्वमे सन् १९२३मे स्वराज्य-पार्टीको स्थापना हुई और इस पार्टीकी ओरसे चुनावके लिए उम्मेदवार खडे किये गये। चुनावके पहले स्वराज्य-दलने एक कार्यक्रम प्रकाशित कर अपनी नीतिकी घोषणा की थी। विना विलम्बके पूर्ण औपनिवेशिक स्वराज्य प्राप्त करना स्वराज्य-दलका तात्कालिक उद्देश्य था । इस उद्देश्यका स्पष्टीकरण करते हुए कार्यक्रममे यह बतलाया गया था कि देशको अवस्थाके अनुकूल शासन-विधान बनानेका अधिकार तथा वर्तमान शासन- ३