पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४७७

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४६४ राष्ट्रीयता और समाजवाद बेकारी बढती जाती थी। नगरोमे रहनेवाले मध्यम श्रेणीके लोगोका जीवन भी संशयापन्न था। किसानोकी भी मुसीवत कुछ कम न थी, क्योकि खेतीमें सकटकी अवस्था भी उपस्थित हो गयी थी। इस सामाजिक सकटके कारण दलवन्दी बढ गयी थी। विविध दल राजनीतिक अधिकार और प्रभावके लिए संघर्ष करते थे, पर इस मुसीवतसे छुटकारा पानेका रास्ता कोई भी नही बताता था । जो शासन-पद्धति लोगोको मुसीबतसे बचा नहीं सकती, उसके प्रति उनका विद्वेष वढ जाता है । भिन्न-भिन्न दलोकी आपसकी लडाईसे वह तंग आ जाते है । लोकतन्त्र शासन उनके विद्वेपका पात्र बन जाता है और वह एक मजबूत आदमीकी जरूरत महसूस करने लगते है, जो राष्ट्रकी ठीक-ठीक व्यवस्था करे । लोगोका यह ख्याल होने लगता है कि व्यवसाय, व्यापार, राजस्वकी हीन अवस्था, वढती हुई वेकारी, आर्थिक और राजनीतिक गड़बड़, यह सब लोकतन्त्र शासनकी दुर्वलतामोके परिणाम है । वास्तवमे पूंजी-पद्धतिका जो सकट है, वही लोकतन्त्र शासनके लिए जिम्मेदार है। जब वह देखते है कि पूंजी-प्रथाके सून धीरे-धीरे थोड़ेसे गुटोमें केन्द्रीभूत होते जाते है और पूंजीप्रथामे स्वाधिकार बढता जाता है, जब वह देखते है कि वडे-बडे ट्रस्ट और व्यवसायके डाइरेक्टरोका व्यक्तिगत प्रभाव वास्तविक है तव व्यवसाय तथा वैकोके चादशाहोके गुटसे उनमे यह भ्रम फैलता है कि अधिनायको (डिक्टेटर्स) के द्वारा शायद नाण सम्भव हो, शायद उनके नेतृत्वमे वह संकटकी अवस्थाको पार कर सके । यही कारण है कि नात्सियोकी पाशविक वर्वरता और अत्याचारको जनताने उपेक्षाकी दृष्टिके साथ देखा। समाजवादी तथा कम्युनिस्टोकी भूलसे भी नात्सी दलने लाभ उठाया । जव जर्मनीमें समाजवादकी उन्नति हुई थी, तब समाजवादियोने अपने शत्रुत्रोको पूर्णरूपसे पदच्युत नही किया था। सेनापर पुराने फौजी लोगोका ग्राधिपत्य था। व्यापार-व्यवसाय पूंजीपतियोके हाथमे था। इसके अतिरिक्त समाजवादी तथा कम्युनिस्ट दल वरावर आपसमे लड़ते रहे। इन्होने एक साथ मिलकर नात्सियोका मुकाबला नही किया । असली और नकली समाजवाद जब डाक्टर अन्सारी ऐसे महानुभाव नब्बे फीसदी समाजवादी होनेका दावा करते है और साथ-साथ इस विषयपर खुशी भी जाहिर करते है कि काग्रेसको समाजवादसे कोई भी खतरा नही है तो मैं इसकी जरूरत महसूस करता हूँ कि खरे और खोटेका फर्क साफ कर दिया जाय, जिसमे असली वस्तुकी पहचानमे कोई दिक्कत न हो । मै डाक्टर महोदय तथा किसी दूसरे सज्जनकी नेकनीयती और ईमानदारीपर किसी प्रकारका हमला नही करता। मैं मानता हूँ कि अपने देशमे बहुतसे ऐसे सज्जन है, जो निहायत ईमानदारीके साथ सच्चे दिलसे यह सरल विश्वास रखते है कि समाजवादके स्वरूपके सम्बन्धमे जो धारणा