पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४८१

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४६८ राष्ट्रीयता और समाजवाद इसलिए करता है कि वह जानता है कि व्यक्तिगत सम्पत्तिका लोप एकवारगी नही हो सकता। मेरी छोटी बुद्धिमे यही पाता है कि कांग्रेस धीरे-धीरे इसी विचार-पद्धतिका समर्थन करने लगेगी। कांग्रेससे वैज्ञानिक समाजवादियोको सचेत रहना चाहिये और उन्हें सुलह और समझौतेके नामपर अपने प्रादर्शसे नहीं गिरना चाहिये । समाजवादके कितने मुख्य-मुख्य विकृत रूप है या हो सकते है, उनकी चर्चा थोड़ेमे मैंने ऊपर की है । पाश्चात्य देशोमे भी ये सव रूप और प्रकार पाये जाते है । वैज्ञानिक समाजवाद न तो सुधारवाद है और न काल्पनिक समाजवाद । यह तर्कको कसोटीपर कसा जा सकता है और यह समाजकी एक ऐसी नवीन आर्थिक व्यवस्था प्रतिष्ठित करना चाहता है, जिसमे उत्पादनके साधन तथा उत्पन्न वस्तुत्रोका वितरण और विनिमय समाजके हाथमें हो। वर्तमान प्रौद्योगिक पद्धतिके युगके पहले वैज्ञानिक समाजवादकी प्रतिष्ठा करना सर्वथा असम्भव था। यूरोपकी प्रौद्योगिक क्रान्तिके फलस्वरूप ही वैज्ञानिक समाजवादका जन्म हुआ है। मशीनके युगमे ही बडे पैमानेपर उद्योगका होना सम्भव हो सका है और वस्तुओंकी पैदावार असीमित मात्रामे वढायी जा सकती है, पर आपमकी स्पर्धाके कारण पूंजीपतियोंमे मुनाफेके लिए होड़-सी लग गयी और माल खपतसे कही ज्यादा तैयार होने लगा। इसीलिए समय-समयपर व्यापारमे संकटकी अवस्था उपस्थित होती रहती है । आजकल जो विश्व- व्यापी अर्थ-सकट है, उससे छुटकारा पाना कठिन-सा मालूम पडता है। लोगोका कप्ट वढ़ता ही जाता है । एक तरफ बेकारी बढ़ती जाती है, दूसरी ओर पूंजीपतियोको कीमत वढानेके लिए पैदावारको कम करना पड़ता है। जिस प्रकारसे आजका व्यवसाय पंजी- पतियोंद्वारा संचालित होता है, उससे पैदावारकी वृद्धिमें भारी रुकावट होती है। यह संकटकी अवस्था तभी दूर हो सकती है, जब एक सर्वथा विभिन्न सामाजिक व्यवस्थाका आयोजन किया जावे। नये समाजमे स्पर्धाको कोई स्थान नहीं रहेगा और एक निश्चित आयोजनाके अनुसार तथा समाजके सव सदस्योकी आवश्यकताअोको पूरा करनेके लिए समाजके प्रौद्योगिक जीवनका संचालन किया जायेगा । जव समाजके हितके लिए उद्योग- व्यवसायका संगठन होगा और उत्पादनके सारे साधन व्यक्तियोकी मिलकियत न होकर समाजकी मिलकियत वन जायेगे, तो अपने साधनोके अनुसार समाज जीवनकी आवश्यकताअोको पूरा करनेके लिए इतने परिमाणमे वस्तुअोका उत्पादन करेगा कि समाजके प्रत्येक सदस्यको पूरी स्वतन्नाके साथ अपनी शक्तियोके विकासका अवसर मिलेगा। समाजके हाथमे जब उत्पन्न वस्तुप्रोका वितरण और विनिमय रहेगा, तो समाजमे दरिद्रता और अशान्तिके स्थानमे तुष्टि, पुष्टि और शान्ति आ विराजेगी। आज जो पैदावारको कम करनेकी कोशिश की जा रही है उसके कम करनेका कोई कारण नहीं रह