पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४८४

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४७१ ) महात्मागांधीको श्रद्धाञ्जलि मूल्योकी रक्षामें है, अत्याचारमे नही, अनाचारमे नही, घृणामे नही, विद्वेषमे नही । मैं पूछना चाहता हूँ इस पतित भारतको उठानेवाला, उसका उद्धार करनेवाला, सारे समाजमें उसको आदर-सम्मान दिलानेवाला, भारतका नाम जो अबतक अपमानित था, तिरस्कृत था, कलंकित था, उसको गौरव प्रदान करनेवाला, भारतीय जिसका नाम लेकर समस्त संसारमे मस्तक ऊँचा करके भ्रमण कर सकते थे यह काम किसका है ? किसने इस भारतीय हिन्दू समाजको, जो कि पतित हो गया था, जो कि घोर वर्ण-व्यवस्थासे पिसा जा रहा था, जिसने स्पृश्यताको इतना उत्तेजन देकर अपने सामाजिक बन्धनोको शिथिल कर दिया था, जिसमे सुदृढता नही थी उसमे वह सुदृढता लानेवाला, इस भारतीय समाज, हिन्दू समाजके अनाचार अत्याचारको नाश करनेवाला, पतितोका उद्धार, स्त्रियोको समाजमे अपना उचित स्थान दिलानेवाला कौन है ? वह गाधी है । भारतको स्वतन्त्र वनानेवाला कौन है ? वह गाधी है । इसलिए जो चाहते है कि भारतका भविष्यमे उत्थान हो, जो चाहते है स्वतन्त्रताका उचित उपभोग हो, जो चाहते है कि भारतवर्ष केवल अपनी स्वतन्त्रताका भोग न करे, किन्तु समस्त एशियाका मार्ग-प्रदर्शक बने, उसका नेतृत्व करे---नही-नही सारा ससार, जिसका हृदय आज व्यथित हो रहा है, जो वास्तविकता' के भूतसे पिसा जा रहा है, जो जीवनके मूल्योको भूल रहा है, जिसके सामने सामाजिक नीतिका कोई मूल्य नही, जिसके सामने सत्यका कोई मूल्य नही, उस समाजको यदि कोई शान्ति दिला सकता है उस व्यथित हृदयको शान्त कर सकता है, ससारमे फिरसे शान्ति, सुख और वैभवकी स्थापना कर सकता है तो वह भारतवर्ष कर सकता है। किन्तु तभी कर सकता है जब वह महात्मा गाधीके मार्गके ऊपर चले । हममे वह शक्ति हो कि हम उनके पद-चिह्नोका अनुसरण करें। आज हमे महात्माजीके लिए प्रार्थना नही करनी है । वह हुतात्मा जीवनभर सारे समाजकी सेवा करते रहे, मरकर भी उन्होने अपने समाजका उद्धार किया । हमको आज प्रार्थना करनी है कि 'भगवन्, हमको मद्बुद्धि दो, भगवन हममे सात्विक बुद्धि दो, भगवन् हम जिस मार्गपर चले वह जीवन प्रदान करनेवाला मार्ग हो, उत्तिष्ठ मार्ग हो । वह हमको पतित बनानेवाला न हो, हमको मृत्युकी घाटीमे उतारनेवाला मार्ग न हो और यदि इस सन्देशको किसीने लिया है तो महात्मा गाधीने । महात्मा गाधी सदा जीवित रहेगे और वह तभी जीवित रह सकते है जब भारतीयोमे थोडेसे भी लोग ऐसे हो जो उनके पद-चिह्नोका अनुसरण करे । गुरु गोविन्दसिंहने जव अपने शिष्योकी परीक्षा की तो उनको पांच ही शिष्य पूरे मिले, सच्चे मिले, जिनकी उनमे निष्ठा थी, जो उनका पूरी तरहसे अनुसरण करनेको तैयार थे । यही गुरुके पच प्यारे थे, इन्हीको सबसे पहले उन्होने अमृत चखाया । अगर मुष्ठिमय लोग भारतवर्षमे पैदा हो, और जीवित हो, जो उनमे आस्था रखते हो, जो उनमे श्रद्धा रखते हो, जो उनके बताये हुए मार्ग पर चले तो मै यह कहना चाहता हूँ कि इस देशका कोई वाल वॉका नही कर सकता । इस देशका भविप्य गौरवमय है और उसके लिए हमे उचित गर्व होगा। मुझे इस अवसरपर कुछ और कहना नही है । मेरा गला दु खसे भरा हुआ रुंधा जाता है । यह वहुतसे शब्दोका अवसर नही । यह काम करनेका अवसर है । जो भारतवर्षके