४७२ राष्ट्रीयता और समाजवाद . भविष्यके लिए सचेष्ट है, जो चाहते है कि उसकी उन्नत अवस्था हो, जो उसको नाज पतन- की अवस्थासे बचाना चाहते है, उनका यह कर्तव्य है कि वे सघबद्ध होकर, इस राजनीतिके पचडेको छोडना हो तो उसको भी छोड़कर, इस देशमे एक ऐसे जीते-जागते सांस्कृतिक आन्दोलनका प्रचार करे, जिस आन्दोलके वलपर उनकी शिक्षा इस देशमे टिक सके । प्रार्थी हूँ कि भारतवर्पमे ऐसे विशाल देशमे, जहाँ अनगिनत लोग वसते हो, यहाँके नर- नारियोमे थोडेसे लोग अवश्य होगे जो ग्राजकी परिस्थितियोसे उठकर साम्प्रदायिक शान्तिके लिए चेष्टा करेगे । और यदि ऐसा हुआ तो हमारा भविष्य उज्ज्वल है, इस देशका कल्याण होनेवाला है ।" युक्तप्रान्तकी असेम्बलीमें दिया भाषण संसारके सर्वश्रेष्ठ मानव तथा भारतके राष्ट्रपिता महात्मा गाधीके प्रति उनके निधनपर अपनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित करनेका अवसर इस व्यवस्थापिका सभाको आज ही प्राप्त हुया है । अपने देशकी प्रथाके अनुसार तथा लोकाचारके अनुसार हमने १३ दिनतक शोक मनाया । यह शोक महात्माजीके लिए नहीं था, क्योकि जो सर्व-भूत-हितमे रत है और जो मानव-जातिकी एकताका अनुभव अपने जीवनमे करता रहा हो उसको शोक कहाँ, मोह कहाँ ? यदि हम रोते है, विलखते है तो अपने स्वार्थके लिए विलखते है, क्योकि आज हम इस वातका अनुभव कर रहे है कि हमने अपनी अक्षय निधि खो दी है, अपनी चल सम्पत्तिको गँवा दिया है। महात्माजी इस देशके सर्वश्रेष्ठ मानव थे, इसीलिए हम उनको राष्ट्रपिता कहते है। हमारे देशमे समय-समयपर महापुरुषोने जन्म लिया है और इस जातिको पुनरुज्जीवित करनेके लिए नूतन सन्देशका सचार किया है । इसमें तनिक भी सन्देह नही है कि अन्य देशोमे महापुरुप उत्पन्न हुए है, लेकिन मेरी अल्प वुद्धिमे महात्मा गांधी ऐसा अद्वितीय वेजोड महापुरुप केवल भारतवर्षमे ही जन्म ले सकता था और वह भी वीसवी गदताब्दीमे, अन्यत्र कही नहीं। क्योकि महात्मागांधीने भारतवर्षकी प्राचीन संस्कृतिको, उसकी पुरातन शिक्षाको परिष्कृत कर युग धर्मके अनुरूप उसको नवीन रूप प्रदान कर, उसमें वर्तमान युगके नवीन सामाजिक एवं आध्यात्मिक मूल्यका पुट देकर एक अद्भुत एव अनन्य- तम सामञ्जस्य स्थापित किया। उन्होने इस नवयुगकी जो अभिलाषाएँ है, जो ग्राकाक्षाएँ है, जो उसके महान् उद्देश्य है, उनका सच्चा प्रतिनिधित्व किया है। इसीलिए वे भारतवर्पके ही महापुरुष नही थे अपितु समस्त संसारके महापुरुष थे । यदि कोई यह कहे कि उनकी राष्ट्रीयता सकुचित थी, तो वह गलत कहेगा । यद्यपि महात्मा गाधी स्वदेशीके व्रती थे, भारतीय संस्कृतिके पुजारी थे तथा भारतीय राष्ट्रीयताके प्रवल समर्थक थे, किन्तु उनकी १. 'लखनऊ रेडियो' ३१ जनवरी, सन् १९४७ ई०
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