पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४७६ राष्ट्रीयता और समाजवाद प्रतिकार अहिंसाके द्वारा करनेके हेतु उन्होने सत्याग्रहका मार्ग निकाला । बुराईसे वे घृणा करते थे, पर बुराई करनेवालेसे नही । कई लड़ाइयोके वे नायक रहे । उनकी सभी , लड़ाइयाँ पीडितोके परित्राणके लिए थी। सत्याग्रहके तारक शस्त्रकी अोर आज संसारका विशेप ध्यान है, क्योकि संसार आज नवीन सहारक शस्त्रोके भयसे ग्रस्त है । गांधीजीका जीवन अहिंसाका एक उपदेश था। वे असलमे सच्ची शान्ति चाहनेवाले परम सात्विक पुरुप थे । उन्होने प्रात्यन्तिक और अति कठोर आत्मसंयम साधा था और सवके लिए करुणा और मैनीके दिव्य भाव उन्होने प्राप्त किये थे । मनुष्य-मानसे प्रेम करना उनके जीवनका परम विधान था । मानवोचित गुणोके वे आदर्श थे और अपने आपको राष्ट्रका प्रथम सेवक कहा करते थे। उन्हे किसीका कोई भय नही था । सत्यकी सेवामे वे अपने जीवनकी वाजी लगा देते थे । समाजहित-साधन और अध्यात्मनिष्ठाको वे मनुष्य- की सबसे श्रेष्ठ निधि मानते थे और इन्हे अन्य सब चीजोके ऊपर रखते थे। पर फिर भी वे बड़े व्यवहारज्ञ थे, क्योकि किसी भी कार्यका प्रारम्भ करनेके पूर्व वे अपने भौतिक और नैतिक साधनोका पूर्ण विचार कर लिया करते थे। समझौतेकी कोई वातचीत वे इतनी नही तानते थे कि उसका तार टूट जाय और यह कहा करते थे कि सच्चा सत्याग्रही समझौतेके लिए सदा प्रस्तुत रहता है । पर कोई सत्याग्रही कभी सत्यसे विमुख नही हो सकता, न कभी बुराईसे मेल कर सकता है । अन्ततक वे अपने पुराने विचारो और प्राचारोको बदलते और नये विचार ग्रहण और विकसित करते रहे। पर उनकी विचार-पद्धतिकी आधार शिला कभी नही बदली । उनके अहिंसा-दर्शनके अनुसार वे किसी स्वतन्त्र राज्य के प्रधान होकर नही रह सकते थे, कारण सभी राज्य दमन और हिंसापर अवलम्बित होते है । उन्हीके शब्द है कि 'मैं अधिकारको स्पर्श कर सकता हूँ, पर ग्रहण नही कर सकता।' यदि वे आज जीते होते तो राज्यकी भूलोको सुधारने, त्रुटियोको दूर करनेका काम करते होते और न्याय और सदाचार-के पक्षमे ही अपने प्रचण्ड प्रभावका उपयोग करते । उनके विश्वासको परीक्षाका जव-जव समय आया, तब-तब वे पर्वतके समान अटल-अचल देख पडे, विरोधमें खड़े अत्यन्त विपम शत्रुदलवल उन्हे विचलित नही कर सके । बडे-बडे दावानलोको वुझाने और तूफानोको शान्त करनेके प्रचण्ड प्रयास उन्होने किये और अपना जीवन लगा दिया उन सद्वस्तुओको पानेके लिए जिनके लिए उनके जीवनका सारा प्रयास था। साम्प्रदायिक पागलपनका वढता हुआ चढाव जब अन्य किसी प्रकारसे रोके नहीं रुका, तब उन्होने अपने जीवनोत्सर्गकी अन्तिम आहुति दे दी जिसकी अद्भुत करामातसे हिंसा और प्रतिक्रियाकी अन्ध शक्तियाँ तत्कालके लिए तो विखर ही गयी । इस आत्म-बलिदानने उस महान् पुरुपका सच्चा व्यक्तित्व अविश्वासियो और राजनीतिक विरोधियोपर भी प्रकट कर दिया और उनकी शंकाएँ दूर की । जो मुसलिम-समाज उन्हे अपना परम शत्रु मानता था वह अव उन्हे अपना अचूक मार्ग-दर्शक और सुहृद् मानने लगा। आत्म-बलिदानके इस अन्तिम कर्मसे उनकी लोकप्रियता इस देशमे तथा वाहर भी शतगुण हो गयी। अपने देशवासियोके हृदयोमे वे सदा पूजित रहेगे और उनका उदाहरण