पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४९

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३६ राष्ट्रीयता और समाजवाद विल पेश किया गया, तव स्वराज्य-पार्टीके सदस्योने सिलेक्ट कमेटीकी सदस्यता भी स्वीकार की और विलके पास होनेमे सरकारकी सहायता की। अगस्त सन् १९४२मे देशबन्धु दासने एक वक्तव्य प्रकाशित किया। इसमें उन्होने स्वराज्य पार्टीकी मांगका इस प्रकार निरूपण किया था- "सबसे पहले सब प्रान्तोंको स्वाधीनता मिल जानी चाहिये । केन्द्रीय शासनपर भी कुछ नियंत्रण मिलना चाहिये । बडी व्यवस्थापक सभापर भी जनताके प्रतिनिधियोंका कुछ न कुछ नियंत्रण होना आवश्यक है। इस नियंत्रणका क्या परिणाम होगा इसका निर्णय गोलमेज परिपद्वारा हो सकता है ।" अपने वक्तव्यमे आगे चलकर वह कहते है कि “वगालमे विप्लवका आन्दोलन भीपण रूप धारण करता जाता है । उसको गम्भीरताका सरकारको अन्दाज नही है । उसका दवाना भी रोज-व-रोज मुश्किल होता जाता है । मै आशा करता हूँ कि ग्रेट ब्रिटेन और भारतवर्ष मेरे बताये हुए मार्गपर चलेगे और आपसमें समझौता कर लेगे, क्योकि यदि स्वराज्य-दलका आन्दोलन विफल हुआ तो उस अवस्थामे कठोरसे कठोर दमन भी बढ़ती हुई हिंसा और अराजकताका मुकाबिला करनेमे समर्थ न होगा । अधिकारिवर्ग इस बातको नहीं समझता कि स्वराज्य-दलके आन्दोलनके असफल होनेपर लोगोंका विश्वास वैध उपायोपरसे उठ जायगा और वह निराश होकर हिसा और अराजकताके मार्गके अनुगामी हो जायेंगे।" मध्य-प्रदेशकी कौसिलोमे स्वराज्य-दलका बहुमत था और बंगालमे स्वराज्य-दल एक शक्तिशाली दल था जो थोड़ेसे सदस्योके सहयोगसे वहुमत प्राप्त कर सकता था, इसलिए उन्होने प्रतिवन्धकी नीतिसे पूरी तौरसे काम लिया और उसका फल यह हुया कि गवर्नरोने कौंसिलोको अनिश्चित कालके लिए विसजित कर दिया और अपने विशेपा- धिकारसे शासनका कार्य करने लगे। अन्य प्रान्तोमे स्वराज्य-दलका वहुमत न था, इसलिए वहाँ प्रतिवन्धकी नीतिसे काम नहीं लिया जा सकता था । १९२५मे बड़ी व्यवस्थापक-सभामे इण्डिपेण्डेण्ट पार्टीके लोग धीरे-धीरे नेशनलिस्ट पार्टीसे अलग हो गये और इन्होने अपना अलग दल बना लिया। इसलिए वहाँ भी प्रतिवन्धकी नीतिका प्रयोग न हो सका । अप्रैल १९२५मे भारत-सचिव लार्ड वर्कन हेडने भारतके सम्बन्धमें एक वक्तृता दी थी जिसमें उन्होने समझौतेकी सम्भावनाकी ओर संकेत किया था। इसी समय वङ्गालके गवर्नर लार्ड लिटन और देशवन्धुमे कुछ समझौतेकी बातचीत हो रही थी और उस समय यह अफवाह उडी थी कि वङ्गालकी स्वराज्य-पार्टी कुछ शर्तोके मंजूर हो जानेपर प्रतिबन्धकी नीतिका परित्याग करेगी और अपना मन्त्रि-मण्डल वनाकर सरकारके साथ सहयोग करेगी। हम यह नहीं कह सकते कि इस अफवाहमे कहाँ तक तथ्य था, पर इसमें सन्देह नही कि लार्ड लिटन और देशबन्धुके वीच समझौतेकी वातचीत चल रही थी। पर जून १९२५मे देशवन्धुकी अकस्मात् मृत्यु हो गयी, इस कारण वातचीतका कोई फल न हुआ। भारत-सचिवने अपनी वक्तृतामे इस वातको स्पष्ट कर दिया था कि सरकारके साथ सहयोग करनेपर ही भारतवासियोको और अधिकार दिये जा सकते है तथा उसने नेतामोको एक शासन विधान तैयार करनेके लिए कहा जिसपर