पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/५४

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भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनका इतिहास ४१ इत्मीनान दिलाया कि भारतवासी उनके साथ पूरी सहानुभूति रखते है । अपनी सहानुभूति दिखलानेके लिए काग्रेसने एक मेडिकल कमीशन भेजनेका भी निश्चय किया पर सरकारने इजाजत नहीं दी। चीनियोके विरुद्ध लड़ने के लिए भारतीय सरकारने कुछ हिन्दुस्तानी फौज चीन भेजी थी। काग्रेसने इसका विरोध किया और सरकारसे अनुरोध किया कि जो फौज या पुलिस हिन्दुस्तानसे चीन, फारस या मेसोपोटेमिया भेजी गयी हो वह वापस बुला ली जावे । यह सच है कि सरकारपर इन प्रस्तावोका कोई प्रभाव न पड़ा, पर कांग्रेसने संसारको दिखला दिया कि इन कार्योके लिए सरकार ही जिम्मेदार है और जनता नही चाहती कि दूसरोंकी स्वतन्त्रता अपहरण करनेमे भारतवासियोका कोई हाथ हो । ब्रिटिश साम्राज्यवादका विरोध करनेके विचारसे गोहाटी काग्रेसने प० जवाहरलाल नेहरूको ब्रुसेल्सके लिए अपना प्रतिनिधि निर्वाचित किया था । फरवरी १९२७मे ब्रुसेल्समें साम्राज्यवादका विरोध करनेके लिए एक “इटर नेशनल काग्रेस" हुई थी। इस काग्रेसमे चीन, मिस्र, फारस, सीरिया, अनाम, कोरिया, मरक्को, मेक्सिको आदि कई देशोसे प्रतिनिधि आये थे । ५० जवाहरलाल भारतके प्रतिनिधि थे। पण्डितजीकी सिफारिशपर मद्रास-काग्रेस (१९२७)ने साम्राज्यवादका विरोध करनेके लिए साम्राज्य विरोधी सघ ( Leaque against imperialism )से सहयोग करनेका निश्चय किया । मद्रासके अधिवेशनमे ही काग्नेसने पूर्ण स्वतन्त्रताको अपना ध्येय घोपित किया। इन विविध निश्चयोके कारण ससारका ध्यान भारतकी ओर प्राकृष्ट हुआ । कलकत्तेकी काग्रेस (१९२८) के अवसरपर वाहरसे बहुतसे सन्देश आये । कलकत्तेके अधिवेशनमे काग्रेसने एक विदेशी विभाग ( foreign department ) खोलनेका निश्चय किया और अपना यह मत प्रकट किया कि साम्राज्यवादका विरोध करनेके लिए यह उचित मालूम होता है कि भारतवर्ष ऐसे सव देशोसे अपना सम्बन्ध स्थापित करे जो साम्राज्यवादका विरोध करना चाहते है । दूसरे प्रस्तावद्वारा वर्किङ्ग कमेटीको हिदायत की गयी कि वह सन् १९३०मे भारतमे 'पैन एशियाटिक फेडरेशन'का पहला अधिवेशन निमन्त्रित करे । मिस्र, सीरिया, पैलेस्टाइन और इराकको काग्रेसने सहानुभूति- का सन्देश भेजा और इन देशोको इस वातका विश्वास दिलाया कि भारत उनके माथ पूरी सहानुभूति रखता है। हम ऊपर कह चुके है कि अखिल भारतवर्षीय काग्रेस-कमेटीने अन्य राजनीतिक दलोके साथ मिलकर एक शासन-विधान तैयार करनेका निश्चय किया था। मद्रास काग्रेसने इस निश्चयको मजूर किया । वर्किङ्ग कमेटीने इस निश्चयके अनुसार सर्वदल सम्मेलनको आयोजना की। विविध संस्थानोके प्रतिनिधि आमन्तित किये गये और सम्मेलनका एक अधिवेशन दिल्लीमे (फरवरी, १९२८), एक वम्वईमे (मई, १९२८) और एक लखनऊ (अगस्त, १९२८)मे हुया । शासन-विधानका मसविदा तैयार करनेमें कई तरहकी कठिनाइयाँ प्रतीत हुई । इसलिए शासनविधानके सिद्धान्तोको स्थिर करनेके लिए एक कमेटी नियुक्त की गयी । इस कमेटीने एक रिपोर्ट तैयार की जो नेहरू रिपोर्टके नामसे प्रसिद्ध है। यह रिपोर्ट औपनिवेशिक स्वराज्यके आधारपर तैयार