सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४० राष्ट्रीयता और समाजवाद कर्मचारियोंके इन घृणित कृत्योके कारण लोगोको असाधारण रोप हुया और नवयुवक प्रतिकारके लिए विक्षुब्ध हो गये । जहाँ भारतकी घरेलू परिस्थिति धीरे-धीरे मुधर रही थी और सब दलोमें सरकारके विरोध करनेका भाव जागत हो रहा था, वहाँ एगियामे भी इस समय कुछ ऐसी बाते हुई जिनका प्रभाव भारतकी राजनीतिक स्थितिपर पता और जिनसे स्वाधीनताके लिए आगे कदम वढानेके लिए भारतको प्रेरणा मिली । हर ऊपर कह चुके है कि सोवियट रूसने ब्रिटिश साम्राज्यवादका विरोध करने के लिए पगियामें एक संघ बनाया था। सोवियट रूसकी इस नीतिके कारण ब्रिटिश सरकारका प्रभाव एशियामे वहुत घट गया। इस कारण १९२१में इजलेण्ट रूसरो एक व्यापारिक नन्धि करनेके लिए विवश हुअा, पर यह सन्धि स्थायी न हो सकी । मन् १९२६में जलेण्टमें कोयलेकी खानके मजदूरोने एक हडताल की थी। सोवियट रूसको ट्रेड यूनियनने इन मजदूरोकी सहायता की, इसलिए ब्रिटिश सरकार सोवियटके चौर भी अधिक विद्ध हो गयी । १९२६-२७में चीनमें एक क्रान्ति हुई थी। उस समय चीनियोका भाव विशेष रूपसे इङ्गलैण्डके विरुद्ध था, ब्रिटिश मन्त्रिमण्डलने इरा विरोधके लिए सोवियट रूसको उत्तरदायी ठहराया श्रीर २४ मई १९२७ को रूससे अपना सम्बन्ध विच्छिन कर लिया। इङ्गलैण्डने इस बातका प्रयत्न किया कि फ्रान्स और जर्मनी इस विषयमें उसका साथ दें । इङ्गलैण्डकी इस कार्य प्रणालीसे सोवियट रूसको और भी भय हुया । उसने अपनी रक्षाके लिए १९२५मे तुर्की के साथ और १९२६मे जर्मनी और, अफगानिस्तानके साथ सन्धि की थी। इन सन्धियोके द्वारा इन राष्ट्रोने आपसमें यह निश्चय किया कि यदि कोई तीसरी शक्ति इनमेंसे किसीपर आक्रमण करेगी तो वह तटस्थ रहेगे सीर कोई किसी ऐसे सम्वन्धमे शरीक न होगा जिसका उद्देश्य उनमेंसे किसीके विरुद्ध आर्थिक अवरोध करनेका हो । यूरोपीय शक्तियोसे अपनी रक्षा करनेके लिए एशियाके राष्ट्रोमे आपसका मेल बढता जाता था और एशियाके राष्ट्र सोवियट रूसको अपना सच्चा मिन बीर सहायक समझते थे। भारत भी साम्राज्यवादका विरोध करनेके लिए एशियाके अन्य राष्ट्रोंसे सह्योग करना चाहता था। गुलाम होनेके कारण यह सन्धि तो कर नहीं सकता था, पर वह इस वातकी घोषणा तो अवश्य कर सकता था कि वह ऐसे किसी युद्ध में ब्रिटिश सरकारका साथ देनेको तैयार नही है जिसका उद्देश्य साम्राज्यवादकी नीवको मजबूत करना हो। १९२७की मद्रासकी काग्रेसने इस बातकी घोषणा की कि भारतवासी अपने पड़ोसियोके साथ शान्ति पीर प्रेमके साथ रहना चाहते है । उसका उनसे कोई झगडा नही है और ब्रिटिश सरकार अपनी सहायता करनेके लिए भारतवर्षको मजबूर नहीं कर सकती। भारतवासियोको इस वातका पूरा अधिकार प्राप्त है कि वह चाहे तो किसी युद्ध में योग दे या न दे । उस समय भारतको उत्तर-पश्चिम सीमापर युद्धकी तैयारी हो रही थी। और आसामकी ओर एक फौजी प्रान्त बनानेका विचार हो रहा था। कांग्रेसने स्पष्ट कर दिया कि यदि सरकार कोई युद्ध छेड़ेगी तो भारतवासियोंका कर्तव्य होगा कि वे इस युद्धमे योग न दे। क्रान्तिमे सफलता पानेपर चीनके लोगोको काग्रेसने वधाई दी और उनको इस बातका