पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/६०

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४७ भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनका इतिहास वक्तव्यमें कांग्रेसका सहयोग प्राप्त करनेके लिए अपनी उत्सुकता प्रकट की। उनके आदेशसे वर्किङ्ग कमेटीके सव सदस्य छोड़ दिये गये । ५ मार्चको लार्ड अरविन और महात्मा गाधीके वीच समझौता हो गया । सव आडिनेस मंसूख कर दिये गये और सत्याग्रहियोके छोड़े जानेकी आज्ञा दी गयी । काग्रेसने सत्याग्रह आन्दोलन स्थगित कर दिया, पर विदेशी वस्त्र और मादक द्रव्योकी दूकानोपर शान्तिमय धरना देनेका अधिकार सुरक्षित रखा । कराँचीकी काग्रेसने विराम सन्धिका समर्थन किया और उसने महात्मा गाधीको गोलमेज परिषदके लिए अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया और निश्चय किया कि उनके अतिरिक्त जिन अन्य सज्जनोको वर्किङ्ग कमेटी नियुक्त करेगी वे भी महात्माजीके नेतृत्वमे काग्रेसका प्रतिनिधित्व करेगे । कांग्रेसने अपने प्रतिनिधियोको यह आदेश दिया कि वह गोलमेज परिपर्दो सेना, परराष्ट्रनीति, राष्ट्रीय आय-व्यय तथा आर्थिक नीतिक सम्बन्धमे नियन्त्रण प्राप्त करनेका उद्योग करे । भारतके सम्बन्धमे ब्रिटिश सरकारने जो लेन-देन किये है उनकी निष्पक्ष जाँच करा कर इसका निश्चय करावे कि इनमेसे भारत और इङ्गलैण्डको कितना-कितना देना है और भारत तथा इङ्गलैण्डका यह अधिकार स्वीकृत करावे कि इनमेसे कोई भी जब चाहे तब एक दूसरेसे अपना सम्बन्ध विच्छिन्न कर सकता है । काग्रेसने अपने प्रतिनिधियोको ऐसी तवदीलियोका अधिकार दिया जो भारत हितके लिए स्पष्ट रूपसे आवश्यक हो । कराँची काग्रेस (मार्च सन् १९३१) ने एक प्रस्ताव बड़े महत्वका स्वीकार किया है । यह नागरिकोके मौलिक अधिकार तथा आर्थिक व्यवस्थाके सम्बन्धमे है । मौलिक अधिकारोंका उल्लेख तो नेहरू-रिपोर्टमे भी पाया जाता है । अखिल-भारतवीय काग्रेस- कमेटीने मई सन् १९२६ मे अपनी यह राय अवश्य जाहिर की थी कि भारतवासियोकी गरीवी केवल विदेशियोकी अर्थशोषण नीतिके कारण ही नहीं है, बल्कि इस गरीवीके लिए समाजका आर्थिक सगठन भी वहुत कुछ अशमे उत्तरदायी है और अपना यह मत प्रकट किया था कि इस गरीवीको दूर करनेके लिए तथा जनताको अवस्थाको सुधारनेके लिए यह आवश्यक है कि वर्तमान आर्थिक और सामाजिक संगठनमे क्रान्तिकारी परिवर्तन किये जायें और विविध वर्गोमे जो घोर असमानता इस समय पायी जाती है वह दूर की जाय. तथापि इस विचारको कार्यान्वित करनेकी कोई चेष्टा नही की गयी थी। कराँची- कांग्रेसने अपना यह निश्चय प्रकट किया कि इस बातकी आवश्यकता है कि जनताके सामने यह वात स्पष्ट कर दी जाय कि जिस प्रकारके स्वराज्यकी काग्रेस कल्पना करती है उसका जनताके लिए क्या अर्थ होगा। काग्रेसकी राय है कि सच्ची राजनीतिक स्वतन्त्रता वही हो सकती है जिससे लाखो भूखो मरनेवालोको वास्तविक आर्थिक स्वतन्त्रता भी प्राप्त हो । इसलिए काग्रेस घोषित करती है कि उसकी प्रोरसे जो कोई शासन-विधान स्वीकृत होगा उसमे उचित आर्थिक व्यवस्थाका भी प्रवन्ध किया जायगा । काग्रेसने एक आर्थिक योजना स्वीकार की और उसमे उचित परिवर्तन, संशोधन या परिवर्धन करनेका अधिकार अखिल भारतीय काग्रेस कमेटीको दिया। वर्किङ्ग कमेटीने कतिपय सज्जनोकी एक उपसमिति इस कार्यके लिए बनायी । इस उपसमितिने २५ जून सन् १९३१ को अपनी