पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/७२

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जन-जागृतिका पुनर्जन्म ५६ की स्पष्ट रूपसे व्याख्या की तथा यह भी स्पष्ट कर दिया कि अपने लक्ष्यकी प्राप्तिके लिए वह किन उपायोको ग्रहण करेगा। उसे इस वातका भी श्रेय प्राप्त है कि उसने प्रारम्भमें जिन नीति और कार्यक्रमका निश्चय किया था, विगत २५ वर्षके भीतर वह ज्योंका त्यों बना रहा । उसमे कुछ भी हेरफेर नही किया गया । समाजवादी विचारधाराने अवश्य ही इधर कुछ वर्पोसे काग्रेसनीतिको एक नया पूर्वीय जामा पहनाया है, पर वतमान युगमें सभी प्रगतिशील आन्दोलनोके लिए ऐसा स्वाभाविक है। नये युगकी मुख्य देन यह है कि उसने उन वातोको राष्ट्रव्यापी व्यावहारिक रूप प्रदान किया है जो वाते १६०६-१९०८ मे नेशनलिस्ट दलने करनेके लिए कही थी। राजनीतिक क्षेत्रमे गांधीजीकी मुख्य देन यह है कि उन्होने सघर्पके नये नये उपाय खोज निकाले और उन्हे व्यावहारिक रूप प्रदान किया, पर हमें यह स्मरण रखना चाहिये निष्क्रिय प्रतिरोधका विच १९०६ मे ही कर लिया गया था और नयी नीतिका वह अनिवार्य अग माना गया था। सभी क्रान्तिकारी राष्ट्रीय अान्दोलनोके मूलमें स्वावलम्वन और आत्मनिर्णयको शक्तिशाली नीति रहती है। तिलक, विपिनचन्द्रपाल और अरविन्द घोषके सवल नेतृत्वमें नेशनलिस्ट दलने ऐसी नीति निश्चित की और उसका पालन किया। इस प्रकार हम देखते है कि १६०५का वर्ष हमारे स्वातन्त्र्य आन्दोलनके इतिहासमे महत्वपूर्ण स्थान रखता है । इस वर्ष मृतप्राय जनतामे, जिसने अपनी शक्ति और स्वतन्त्रता खो दी थी, नवजीवनका संचार हुआ और इस क्रान्तिका श्रेय नेशनलिस्ट दलको है। उसीने जनताको नया मार्ग दिखाया और उसे ऐसी रामवाण औषधि प्रदान की जिससे वह खोयी हुई स्वधीनता पुनः प्राप्त कर सके । 1