पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/८१

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राष्ट्रीयता और समाजवाद उन वर्गोके हाथमें रहे जो गवर्नमेंटके सहायक है । उसी दृष्टिसे संरक्षणोंके नियम बने है; इसी दृष्टिसे चुनावके निर्वाचन क्षेत्र बनाये गये है । इसी दृप्टिस हरिजनीको और ईसाइयोको सुरक्षित स्थान अथवा पृथक् प्रतिनिधित्व दिया गया है । एमी विचारले अपने प्रान्तके देहाती क्षेत्रोमें रगीन वक्सकी व्यवस्था नही की गयी है । इसी दृप्टिरो सार्वदेशीय व्यवस्थापक सभा (फेडरल लेजिसलेचर) के लिए अप्रत्यक्ष चुनावका प्रकार स्वीकृत हुअा है और देशी राज्योकी प्रजाको अपने चुने हुए प्रतिनिधि भेजनेका अधिकार नही दिया गया है। सन् १९३२ मे ही अर्थात् नये विधानके मंजूर होनेके तीन वर्ष पूर्व ही इन प्रान्तके लीन गवर्नर सर मालकम हेली (अव लाई हेली) ने अपनी ववत्तायोमे यहाँत. जमीदारो तथा व्यापारियोको सलाह दी थी कि वह अपना एक दल संगठित करे जो उनके हितोकी रक्षा करनेके लिए इन नये अधिकारीका उपयोग करे । इस सम्बन्धमे उन्होने गवर्नमेटकी नीतिको इन शब्दोमे स्पष्ट किया था- "अापकों एक दल सगठित करना होगा, जिसके पास एक कोप हो और जो उनित रूपसे अनुशासनके सूत्रमे परस्पर आबद्ध हो । जबतक यह संगठन प्रस्तुत नहीं हो जाता तवतक हम अधिकारी लोग छत्रको आपके लिए सुरक्षित रखनेका प्रयत्न कर सकते है । हम प्रचारद्वारा ऐसा वातावरण प्रस्तुत कर सकते है जिससे ऐसे दलकी सृप्टिमें सहायता मिले किन्तु हम दलकी सृष्टि नही कर सकते। यह काम दूसरोके करनेका है। मेरी अपील बडे और छोटे जमीदार, व्यापारी तथा विविध पेणेके लोगोसे है। हमारे सामने एक बड़ा खतरा है । केवल जायदादवाले लोगोको ही नहीं वरंच सब शान्तिप्रिय लोगोको इस खतरेसे वचनेके लिए सगठित हो जाना चाहिये ।" एक दूसरी वक्ततामे पाप जमीदारोको चेतावनी देते है कि यदि नये अधिकार गलत हाथोंमे चले गये तो नये विधानसे न आप और न प्रान्त कुछ लाभ उठा सकेगा। यदि इसके बाद शासकोकी अोरसे यह कहा जाय कि हम निर्वाचनके मामलेमे तटस्थ है तो इस उक्तिपर कैसे विश्वास किया जा सकता है। ज्यो-ज्यो वर्ग-चेतना बढ़ती जावेगी त्यो त्यो मध्यम श्रेणीके लोग (अर्थात् बडे जमीदार, पंजीपति आदि) विदेशी सत्ताके और नजदीक आते जावेगे । इसका कारण यह है कि इस श्रेणीके लोग विदेशी हुकुमतको तो किसी प्रकार सहन भी कर सकते है किन्तु जनसाधारणकी क्रान्तिको सफल होते नहीं देख सकते । यह अवस्था अपने देशमे - उत्पन्न होती जाती है । ऐसे समय निम्न मध्यम वर्गके लोग किंकर्तव्यविमूढ हो जाते है । सामान्यत. वह मध्यम श्रेणीके प्रभाव और अधिकारसे विणेपरूपसे प्रभावित हुआ करते है । जनतापर सामान्य रूपसे उनका विश्वास नहीं रहता। वह उसके अपरिमित शक्ति-भडारसे अपरिचित है । जनताकी शक्तिका प्रदर्शन होनेपर भी वह सहसा इस वातपर विश्वास नही करते कि यह शक्ति टिकाऊ हो सकेगी। सच बात तो यह है कि जनता आज प्रगतिशील नेतृत्वको स्वीकार करनेके लिए तैयार है किन्तु हम आप ही यात्म-विश्वासकी कमीसे इन नवीन शक्तियोका स्वागत करनेमे अपनेको अशक्त पाते है ।