पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अभिभापण ६७ इस सविसको तोड देना पडा । मैं समझता हूँ कि यदि सम्भव हो तो हमको इसका प्रवन्ध छोटे या बड़े पैमानेपर फिरसे करना चाहिये। जो सज्जन इस सर्विसमे सम्मिलित किये जावे उनको निपुण कार्यकर्ता बनानेका आयोजन होना चाहिये । मैं समझता हूँ अवतक हमारा काम जिस तरहते चलता रहा है वह सन्तोषप्रद नही है। पुराने 'फार्मुलो'के सहारे हमारा काम अव नही चल सकता । परिस्थितिमे महान् परिवर्तन हो गया है । उसीके अनुसार हमको कार्य-प्रणाली वदलनी होगी। इसमे सन्देह नही कि हमारे कार्यकर्तायोने असाधारण स्वार्थत्याग, अपूर्व लगन और सगठनकी योग्यताका अच्छा परिचय दिया है। किन्तु यह भी प्रत्यक्ष है कि वह समयानुकूल अपने कामके ढगमे परिवर्तन करनेकी क्षमता नहीं रखते । यह चोटीके कार्यकर्तामोका काम है कि वह निर्णय करे कि उनको किस किस दिशामे परिवर्तन करनेकी आवश्यकता प्रतीत होती है और इसे स्थिर करके इसकी शिक्षा दिलानेका प्रबन्ध करे । कार्यकर्तामोके मानसिक क्षितिजको भी वढानेकी जरूरत है । हमने उनको एक साँचेमे डाल दिया है पर अब वह साँचा उतना उपयोगी नही रह गया है जितना कि पहले था । यह स्पष्ट है कि हमारे पुराने हथियार अव आगे उतने कारगर न रहेगे । हमारे युद्धका रहस्य और प्रकार (टेकनिक) दूसरोने जान लिया है और उसके प्रतिकारका प्रकार भी स्थिर कर लिया है । हमारा आन्दोलन एक मजिल ऊपर उठ रहा है । इसके लक्षण स्पष्ट दीख पड़ते है । इतिहासकी आवश्यकता चाहती है कि राष्ट्रीय आन्दोलन एक उँचे स्तरमे प्रवेश करे। यह आवश्यकता पूरी होकर रहेगी चाहे यह कार्य हमारे द्वारा सिद्ध हो या अन्य संस्थाओ द्वारा । किसान और मजदूरोमे वर्ग-चेतना बढती जाती है । वस्तुस्थिति इसके अनुकूल है । इसको रोकनेके तरह तरहके उपाय हो रहे है । नये-नये कानून बनाये जाते हैं । उनकी सस्थाएँ गैरकानूनी करार दी जाती है, उनके कार्यकर्ता जेलमे वन्द किये जा रहे है और उनके अखबारोसे जमानत तलब की जाती है । काग्रेस इन नवीन शक्तियोकी उपेक्षा नही कर सकती। इनसे सम्बन्ध जोड़ना और इनकी आकाक्षायोको अपनाना तथा उनकी पूर्तिके लिए उद्योग करना कांग्रेसके लिए आवश्यक हो गया है । यदि काग्रेस इस कार्यको नही करेगी तो वह पिछड जावेगी और इतिहास-निर्दिष्ट कार्य किसी अन्य सस्था द्वारा सम्पन्न होगा। यह हम ऊपर कह चुके हैं कि स्वतन्त्रताकी लडाईको आगे बढानेके लिए जनताका संगठन अत्यन्त आवश्यक हो गया है। क्या हम नही देखते है कि देशकी प्रतिक्रियागामी शक्तियाँ समाजके वह वर्ग जो जनताका शोषण करते है और अपने अस्तित्वके लिए विदेशी हुकूमतके आश्रित है, अाज ब्रिटिश साम्राज्यवादकी छत्रछायामे अपनेको संगठित कर रहे है ? उन्नतिशील वाँकी बढती हुई शक्तिको रोकनेके लिए ही इस नवीन विधानका जन्म हुआ है। जहाँ १९१९ ई०के विधानका आशय भारतीय शासनमे तथा उद्योग- व्यवसायके क्षेत्रमे हिन्दुस्तानियोको एक छोटा-सा हिस्सेदार बनाकर सन्तुष्ट करना था वहाँ इस नये विधानका गूढ अभिप्राय देशकी सकल प्रतिक्रियागामी शक्तियोको राष्ट्रीयताके विरोधमे खडा करना है। इरा उद्देश्यको पूरा करनेके लिए शासकोकी ओरसे अथक प्रयत्न कई सालसे हो रहा है । उनकी यह कोशिश है कि नये विधानमे शासनकी वागडोर