पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/८५

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७२ राष्ट्रीयता और समाजवाद अवश्य तैयार हो गया है जो गवर्नमेण्टकी पोरसे गाँवोमे प्रचारका काम करता है। इसके द्वारा जमीदारोको आगामी निर्वाचनमे सहायता भी पहुँचायी जा सकती है । अव प्रश्न यह है कि हमारे किसान और छोटे जमीदार अपनी मुसीवतसे छुटकारा किस प्रकार पा सकते है। छोटे जमीदारोंकी हालत भी इधर बहुत खराव हो गयी है । साढे छियासी फीसदीसे ज्यादा जमीदार १०० ०) रु०से भी कम मालगुजारी सालमे देते है; ५६ फीसदी जमीदार २४)रु०से कम सालाना मालगुजारी देते है । २०३ जमीदार ऐसे होगे जो २००००)रु० या इससे अधिक मालगुजारी देते है। लगभग ६००के ऐसे जमीदार है जिनकी सालाना मालगुजारी ५०००)रु० या उससे अधिक है। अपने प्रान्तमे कुल लगभग २२ लाख जमीदार है । इनमेसे ८६३ पीसदी जमीदार किसानोके अान्दोलनमे सम्मिलित हो सकते है । किसान और छोटे जमीदारोको अपना एक दृढ सगठन बनाना चाहिये । जव बडे जमीदार सगठित हो रहे है तो कोई कारण नहीं है कि किसान अपना संगठन क्यो न बनावें। छोटे जमीदारोका हित बडे जमीदारोके साथ रहनेमे नही है । वह तो कहने भरके लिए ही जमीदार है । वहुतसे छोटे जमीदारोंके पास इतनी जमीन भी नही है कि वह अपने कुटुम्बका पालन-पोपण कर सके । उनकी जमीदारी इतनी छोटी है कि उससे उनको कोई लाभ नही होता। कर्जके बोझसे वह भी परेशान है । सामन्तशाहीके युगमे जव समाजमे बड़े जमीदारोका प्राधिपत्य था किसान अपनेको खुली तौरपर सगठित नहीं कर सकते थे। उनको चुपचाप सब जुल्म वर्दाश्त कर लेना पडता था । जव अत्याचारकी मात्रा बहुत वढ जाती थी और आर्थिक कप्ट असह्य हो जाता था तो वह विद्रोह कर बैठते थे, किन्तु पशुवलके द्वारा वह जल्द दवा दिये जाते थे। इस प्रकार पुराने युगमे ससारमे सर्वत्र समय-समयपर किसानोके विद्रोह हुए है । जब वह वहुत बडी सख्यामे खेतसे वेदखल कर दिये जाते थे तो वह कभी-कभी गुप्त सभाएँ बनाकर अपनी रक्षाका आयोजन करते थे और जमीनपर कब्जा पानेके लिए जोर-जवर्दस्ती करते थे। कभी-कभी उनका विद्रोह सफल हो जाता था। किसानोका सबसे बडा विद्रोह चीनका 'टैपिग' विद्रोह है। कई वर्षतक विद्रोही चीनके एक बहुत वड़े भागपर हुकूमत करते रहे और यदि विदेशी राज्य हस्तक्षेप न करते तो उनका राज्य स्थिर हो जाता। जव पूंजीवादका युग आता है तब सामन्तोंकी सत्ता नष्ट होने लगती है, कमसे कम उनका अधिकार और प्रभाव स्टेटमे वहुत घट जाता है। किसानोको अपने सगठन कायम करनेका अधिकार मिल जाता है, यद्यपि वह इस अधिकारसे तबतक लाभ नही उठा सकते जबतक उनको शिक्षित वर्गका नेतृत्व प्राप्त नहीं होता। किसान सदा दूसरेके नेतृत्वमे ही आगे बढ सकते है । अपना नेतृत्व स्वय करनेकी उनमें क्षमता नही रहती । वह अपने भरोसे या तो विद्रोह कर सकते है या जमीदार और राज्यसे अनुनय-विनय कर सकते है । संगठन तथा प्रचारके तरीकेसे वह अनभिज्ञ है । जब शिक्षित समुदाय किसानोका सगठन करने लगता है तब वैध उपायोसे काम लेकर किसान अपनी उन्नति