पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/८६

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अभिभापण करना प्रारम्भ करते है । साधारणतः किसान राजनीतिसे अलग रहते है । वह अपने आर्थिक प्रश्नोके लिए ही आन्दोलन करते है । सन् १९१८ मे प्रयागमे एक किसान-सभा कायम की गयी थी। यूरोपीय युद्धके बाद सारे एशियामे वेचैनी थी। युद्धमे विजय प्राप्त करनेके लिए मिन-राष्ट्रोने आत्म- निर्णयके सिद्धान्तको स्वीकार किया था। प्रेसिडेट विलसनकी नीतिकी घोपणासे पददलित राष्ट्रोमे एक अपूर्व उत्साह था। उनकी आशाएँ ऊँची हो गयी थी। लडाईके जमानेमे गाँवके हजारो आदमी फौज और 'लेवरकोर' मे भरती हुए थे। युद्धमे भाग लेनेसे उनका मानसिक क्षितिज विस्तृत हो गया था। राजनीतिक सभागोका भी उनपर प्रभाव पड़ा था । लडाईके बाद गल्लेका निर्ख बहुत बढ गया था। इससे किसानकी अच्छी आमदनी हो गयी थी। ताल्लुकेदार इस आमदनीमे हिस्सा चाहते थे। कानूनके अनुसार वह सात सालमे एक वार ही फी रुपया एक आना लगानमे इजाफा कर सकते थे। इसलिए उन्होने वेदखलीके कानूनसे फायदा उठाकर किसानोको वेदखल करना शुरू किया और नजरानेमे गहरी रकम लेकर दूसरे काश्तकारोके साथ उस जमीनका वन्दोबस्त करना शुरू किया । अकसर जमीनके वन्दोवस्तके लिए बोली बोली जाती थी और जिस काश्तकारकी बोली सबसे ज्यादा होती थी उसको पट्टेपर जमीन दी जाती थी। वहुतसे किसान इस तरह वेदखल कर दिये गये। बहुतोको पट्टेके लिए महाजनसे ज्यादा सूदपर रुपया उधार लेना पड़ता था। नजरानेकी माँगसे किसान तग आ गये थे। प्रयागकी किसानसभाने किसानोको सङ्गठित करना शुरू किया। श्रीधर बलवन्त जोधपुरकर जो वावा रामचन्द्र के नामसे प्रसिद्ध है उस समय जौनपुर जिलेमे रहते थे और वहाँ से परतापगढ जिलेके किसानोमे प्रचार किया करते थे। सन् १९२० मे किसान सभाका कार्य तेजीसे वढने लगा। किसानोकी माँगे यह थी-(१) वेदखलीपर रोक; (२) दस्तूरसे ज्यादा अववाव न हो, (३) वेगारपर रोक, (४) जुर्मानोका बन्द होना, (५) गैर-कानूनी टैक्सोका बन्द होना । किसानोको प्रतिज्ञा लेनी पडती थी कि हम सदा शान्त रहेगे; गैरकानूनी टैक्स नही देगे; वेगार विना मजदूरी लिये न करेगे, पतई, भूसा, रसद बाजार-भावपर बेचेगे; नजराना न देगे चाहे वेदखल हो जायँ । बेदखल खेतको दूसरा कोई किसान न लेगा; लगान ठीक वक्तपर अदा करेगे । जबतक वेदखलीका कानून मसूख न होगा हम दम न लेगे। प्रत्येक किसानको १४ प्रतिज्ञाएँ लेनी पड़ती थी। परतापगढसे किसान आन्दोलन रायबरेली जिलेकी दक्षिणकी तहसीलोमे फैला। सन् १९२१ के प्रारम्भमे आन्दोलन पुष्ट हो गया था । किसानोकी सभारोमे हजारोकी भीड़ होती थी। हिन्दू-मुसलमान, पुरुप-स्त्री सब सम्मिलित थे। किसान आन्दोलन साम्प्रदायिक भेदभावसे सर्वथा मुक्त था। गवर्नमेण्ट और ताल्लुकेदार किसानोंकी जागृतिसे भयभीत हो गये थे। ७ जनवरी १९२१ को मुशीगञ्जमे गोली चली। इसमे कई किसान आहत हुए। गोलीकाण्डके वादसे रायबरेली आन्दोलन कुछ शिथिल पड़