पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/९७

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८४ राष्ट्रीयता और समाजवाद असमर्थ है । इन दंगोंकी वजहसे हिन्दुनो और मुसलमानों दोनोमे काग्रेसकी प्रतिष्ठाको धक्का लगा है। मुसलमान सम्प्रदायवादियोंकी करतूतो, साम्प्रदायिक देश-द्रोहियोकी चालो और काग्रेस मन्त्रिमण्डलोकी ढीली-ढाली नीति इन सबने मिलकर काग्रेसको हिन्दू जनतामे बदनाम किया। हिन्दू-महासभामे एक अश ऐसे लोगोका था जो ब्रिटिश साम्राज्यशाहीसे लडकर देशमें हिन्दू राज्यकी स्थापनाका स्वप्न देखता है । प्रारम्भमे काग्रेस-मन्त्रिमण्डलोकी स्थापनासे यह वर्ग सन्तुष्ट था। काग्रेसमे हिन्दुअोकी मुख्यता होनेके कारण इसका यह विश्वास हो चला था कि आगे चलकर देशमे हिन्दूराज्य कायम हो सकेगा। दंगोके अवसरपर काग्रेसी मन्त्रिमण्डलोद्वारा जो नीति बरती गयी उसकी वजहसे यह वर्ग भी निराश हो गया। हैदराबादके आन्दोलनमे काग्रेसने जिस प्रकार अपनेको अलग रखा और आन्दोलनको साम्प्रदायिक रूप धारण करने दिया उससे भी हिन्दू जनतामे काग्रेसके सम्बन्धमे गलतफहमी फैली और हिन्दू महासभाके प्रति सहानुभूति वढी । मुस्लिमलीगकी प्रतिष्ठा वढने और मुसलमानोका उसपर सिक्का जमनेका एक कारण यह हुआ कि जिन प्रान्तोमे मुसलिम लीगसे अलग रहकर मुसलमानोंने चुनाव लडा था और मिनिस्ट्री कायम की थी, उन प्रान्तोमे उन्हें अपने नीचेकी जमीन खिसकती दिखायी दी। चूकि ये प्रान्त चारो ओरसे काग्रेसी प्रान्तोसे घिरे हुए है, इसलिए उन प्रान्तोकी जनताकी अवस्थामे सुधार होते देख स्वभावत इन प्रान्तोको जनतामे प्रतिगामी मिनिस्ट्रियो- के प्रति असन्तोष बढ चला । ऐसी हालतमे फजलुल हक और सिकन्दर हयात इस वातके लिए मजबूर हुए कि मुसलिम लीगमे सम्मिलित होकर काग्रेसी मन्त्रिमण्डलको बदनाम करे और मुसलमानोके मजहबी जजवातको उभाडकर अपने अस्तित्वको सुरक्षित रखे । इस प्रकार ये साम्प्रदायिक सस्थाएँ अपना पुराना चोला बदलकर समाजके प्रतिगामी वर्गोकी ताकतोको सुरक्षित रखनेवाली समस्याएँ बन गयी है । अलग-अलग संगठन होनेपर भी आज इन सस्थानोका मौलिक स्वरूप एक ही हो गया है और भविष्यमे शीघ्र ऐसा समय आ सकता है जब कि अपने चेहरेपरसे साम्प्रदायिकताका नकाब उतारकर या उसे नाममात्रको ही कायम रखकर वे सस्थाएं एक-दूसरेकी खुलेग्राम मदद करती नजर आये। सम्प्रदायवादी संस्थानोके इस नये दृष्टिकोणपर यूरोपकी फैसिस्ट विचारधाराकी छाप है । फैसिस्ट राष्ट्रोकी ओरसे गुप्त और अर्ध-प्रकट रूपसे जो प्रचार जारी है उसपर भी इनका काफी असर पड़ा है। पूर्वीय जगतमे फैसिस्ट विचारधाराका प्रचार करने और लडाई छिडनेकी हालतमे इन राष्ट्रोका समर्थन फैसिस्ट-राष्ट्रोके पक्षमे प्राप्त करनेके लिए फैसिस्ट राष्ट्रोकी ओरसे कई वर्षोंसे लगातार प्रयत्न हो रहे है और इस कार्यके लिए इन राष्ट्रोकी अोरसे काफी धन भी खर्च किया जाता है । इन लोगोने उन सभी देशोमे अपना जाल विछा रखा है जिनपर या तो इनकी आँखे गडी हुई है और जिन्हें वह आगे चलकर हडप जानेके स्वप्न देख रहे हैं या जिन देशोमे नाजी-प्रचारद्वारा युद्धकी अवस्थामे ब्रिटेन, फ्रान्स और रूसको तंग किया जा सकता है । फिलिस्तीन और सीरियाके अरव-