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पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/९६

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आस्तीनके ये सॉप यह कह कर कोसा जा रहा है कि वह शासन करनेके अयोग्य है वह धर्म और संस्कृतिकी रक्षा करनेमे असमर्थ है, उसके हाथसे शक्ति छीनकर सस्थानोके प्रतिनिधियोके हाथोमे, शक्ति देनेसे ही देशका भला हो सकता है । जैसा कि हमने ऊपर कहा, साम्प्रदायिक समस्याका जटिल होना काग्रेसके पद-ग्रहणके बाद अनिवार्य था। नये शासन-विधानके लागू होनेके वाद देशकी स्थितिमे एक महत्त्वपूर्ण अन्तर हो गया है। आज सूवोमे हुकूमतकी वागडोर, राजनीतिक शक्ति, एक बड़े हदतक जनताके हाथमे आ गयी है । जनताके प्रतिनिधियोके रूपमे ८ सूवोमे काग्रेसी मन्त्रिमण्डल कायम है। परन्तु अपने साम्प्रदायिक स्वरूप, प्रतिगामी कार्यक्रम और साम्राज्यशाहीके समर्थनके कारण साम्प्रदायिक संस्थानोके नेताओको इस राज्यशक्तिमे उनके इच्छानुसार भाग नहीं मिल पाया और उनकी चाह उनके मनमे ही दवी रहकर खटक रही है । कहनेको हिन्दूसभा और मुस्लिमलीग आदि साम्प्रदायिक संस्थानोका उद्देश्य अपने सम्प्रदायके सर्वसाधारण लोगोकी भलाईके लिए प्रयत्न करना रहा है, पर यदि इन सस्थानोहारा किये जानेवाले कार्यपर ध्यान दें तो हमे पता चलेगा कि व्यवहार- रूपमें ये सस्थाएँ मुट्ठीभर सामन्तो, राजानो, तालुकेदारों, जमीदारो और शहरके कुछ अनुदार मध्यम श्रेणीके लोगोकी सस्थाएँ रही है, जो कि धर्मके नामपर अपने वर्गका स्वार्थ-साधन करने, सरकारी नौकरियो और एसेम्बलीमे सीटे आदि प्राप्त करनेके काममे लायी जाती रही है । कांग्रेसके हाथमे शासन-शक्ति आ जानेसे ये वर्ग अपने राजनीतिक अधिकारोको छीना हुआ देखकर क्षुब्ध हो रहे है । राजनीतिक अधिकारोसे ये वचित थे ही साधारण जनता, किसानो, मजदूरोकी आर्थिक अवस्थामे सुधारके जो कानून पास हो रहे है उससे इनकी सुविधाअोपर भी आघात पहुँच रहा है । फलस्वरूप इनका क्षोभ विद्रोहका रूप धारण कर रहा है। किसानोके आर्थिक भारको कम करनेवाले लगान और कर्जकी कमी वगैरहके कानून ज्यो-ज्यो पास होते जाते है और काग्रेसजन जिस अनुपातमे किसानो और मजदूरोकी आर्थिक माँगोके आधारपर उनका संगठन करते जाते है उसी अनुपातमे इन लोगोका काग्रेस-विरोध वढता जाता है और ज्यो-ज्यो इनकी आर्थिक सुविधाअोपर आघात और जनतामे श्रेणी-चेतना बढती जायगी, त्यो-त्यो काग्रेसके प्रति इनका विरोध भी बढता जायगा । साम्प्रदायिक नेतायोमे जो क्षोभ पैदा हो गया उसकी वजहसे उन्होने खासकर मुसलिमलीगके नेताअोने, ऐसा जहर उगलना शुरू कर दिया था जिसका लाजिमी नतीजा था कि जगह-जगह दगे हो जाते । अगर इन लोगोने जानबूझकर दगे नही कराये तो कमसे कम अपने उत्तेजनाजनक भाषणो और लेखो आदिके द्वारा ऐसा वायुमण्डल तो तैयार कर ही दिया था जिसमे दगे हो जाना लाजिमी हो गया था। दुर्भाग्यवश कांग्रेसके नेतानोने दूरदर्शितासे काम लेकर पहलेसे ही दंगेको रोकनेकी तैयारी न की, मन्त्रिमण्डलोने दगोको रोकनेकी तैयारी न की और पुलिसने इन दगोको शान्त करनेमे आगे बढकर उचित तत्परता नहीं दिखायी । इसका नतीजा यह हुआ कि सम्प्रदायवादियोको यह कहकर काग्रेसको बदनाम करनेका मौका मिल गया कि काग्रेसी हुकूमत अमन-अमान बनाये रखनेमे