पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/१२१

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राम किसन कित्ती सरस । कहत लगे बहु बार ।।
कुछ कविचंद की । सिर चहुचाना भार ।। छं०५८५,स०२,

और तीसरी 'दिल्ली किल्ली कथा' में योगिनिपुर के राजा अनंगपाल तोमर द्वारा वहाँ पृथ्वी में अभिमंत्रित कील गाढ़ने, उखाड़ने और फिर गाड़ने पर उसके ढीले रहने के कारण 'दिल्ली' ( दिल्ली) नाम पड़ने का हाल कहकर उनके द्वारा अपने दौहित पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली-राज्य दान करने के विचार का वृत्तान्त दिया। चौथे 'लोहाना श्राजानुबाहु समय' में लोहाना आजानुबाहु नामक सामंत के साहस के फलस्वरूप पृथ्वीराज द्वारा विपक्षी के ओरछागढ़ का उसे पुरस्कार देना और उसका युद्ध करके उस पर अधिकार कर लेने का वर्णन है । पाँचवें 'कन्ह पट्टी समय' में पृथ्वीराज के श्राश्रित चालुक्य नरेश भोलाराम के सात चचेरे भाइयों को दरबार में मूँछ ऐंठने के अपराध पर कह चौहान का युद्ध में सब को मार डालने और अन्त में दण्ड- स्वरूप अपनी आँखों पर सोने की पट्टी चढ़वाने का प्रसंग है। छठवें 'आपेटक वीर बरदान समय में वन में मृगया-रत पृथ्वीराज का चंद की कृपा से बावन 'वीरों' को सिद्ध करने का हाल है। सातवें 'नाहरराय समय' में मंडोवर के शासक नाहरराय द्वारा अपनी कन्या पृथ्वीराज को व्याहने का वचन पलटने के परिणामस्वरूप युद्ध तथा चौहान का विजय प्राप्त करके इंच्छिनी से विवाह करने का विवरण है। आठवीं 'मेवाती मुगल कथा' में मेवात के राजा मुगल ( मुद्गलराव ) से सोमेश्वर द्वारा कर माँगने पर युद्ध और उनकी विजय का वृत्त है। नवीं 'हुसेन कथा' में गुज़नी के शाह शहाबुद्दीन और उसके चचेरे भाई मीरहुसेन का दरबार की चित्ररेखा नामक सुन्दरी वेश्या से प्रेम, शाह के मना करने पर भी हुसेन की अवज्ञा के कारण उसका देश- निर्वासित हो पृथ्वीराज के शरणार्थी होकर गोरी के आक्रमण में शौर्य दिखाकर मारे जाने और चित्ररेखा का जीवित ही उसकी कब्र में बंद हो जाने तथा बंदी गोरी का सन्धि के बाद हुसेन के पुत्र ग़ाज़ी के साथ ग़ज़नी लौटने का वर्णन है। दसवें 'आपेटक चूक वर्णनं' में अपना बैर सुनाने के लिये श्राखेट में संलग्न पृथ्वीराज पर गोरी द्वारा आक्रमण परन्तु युद्ध में उसके हारकर भाग खड़े होने का वृत्तान्त है । ग्यारहवें 'चित्ररेखा समयौ' में गोरी-द्वारा आरब ख़ाँ पर श्राक्रमण परन्तु सुन्दरी चित्ररेखा को प्राप्त करने पर सन्धि करने और सर्वथा उसके वशीभूत होने का आख्यान है । बारहवें 'भोताराय भीमदेव समय' में सुलतान गोरी की भीमदेव पर चढ़ाई का समाचार पाकर पृथ्वीराज का अपने दोनों शत्रुओं से लड़ने के लिये सन्नद्ध होने और भोलाराम की