पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/१२२

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पराजय की वार्ता है । तेरहवे 'सलए जुद्ध समयो' में गोरी के आक्रमण, पृथ्वीराज द्वारा उसका मोर्चा रोकने,सलखराज प्रमार की वीरता और सुलतान के बंदी होने के उपरान्त युक्त किये जाने की कथा है। चौदहवीं 'इंच्छिनी व्याह कथा' सतख प्रसार की कन्या से पृथ्वीराज का विधिपूर्वक विवाह वर्णन करती है । पन्द्र मुगल परताव' इनको व्याह कर लाते हुए पृथ्वीराज पर मेवात के सुगत राजा द्वारा पूर्व बैर का बदला लेने के लिये आक्रमण परन्तु युद्ध में उसके बन्दी होने का विवरण प्रस्तुत करता है । सोलहवें 'पुंडीर दाहिनी विवाह नाम प्रस्ताव' में चंद पुंडीर की कन्या पुडी दाहिमी से पृथ्वीराज का विवाह दिया गया है ! सत्रहवें 'भूमिमुपन प्रस्ताव' में पृथ्वीराज को देवी वसुंधरा द्वारा खट्टू वन में असंख्य धन गड़े होने की स्वप्न में सूचना की चर्चा है। हारहवें 'दिल्ली दान प्रस्ताव' में अनंगपाल का पृथ्वीराज को अपना दिल्ली-राज्य दान करके तपस्या हेतु बद्रिकाश्रम जाने का समाचार सुनकर सोमेश्वर की प्रसन्नता का उल्लेख है । उन्नीसवीं 'माघी आट कथा' में राजनी दरवार के कवि माधौ भाट का पृथ्वीराज के दिल्ली दरबार में भेद हेतु श्राने और धर्मायन कायस्थ से गुप्त रहस्य प्राप्त करके राजनी भेजने, जिसके फल- स्वरूप गोरी के आक्रमण परन्तु युद्ध में उसके बन्दी होने और एक मास पश्चात् मुक्ति पाने का प्रसंग है। बीसवें 'पदमावती समय' में समुद्र- शिखर गढ़ के यादव राजा विजयपाल की पौत्री पद्मावती का एक शुक द्वारा पृथ्वीराज को रुक्मिणी की भाँति अपना उद्धार करने का संदेश, चौहान द्वारा शिव मंदिर से उसका हरण और युद्ध में विजयी होकर दिल्ली की ओर बढ़ना तथा इसी अवसर पर गौरी का व्याक्रमण, युद्ध और उसके बन्द किये जाने तथा कर देने पर मुक्ति का उल्लेख है । इक्कीसवें प्रिथा ब्याह वर्णन' में चित्तौड़ के रावल समरसिंह का पृथ्वीराज की बहिन पृथा से विवाह दिया है । बाईस 'होली कथा' में होली पर्व मनाये जाने का कारण बताया गया है । तेईसवी 'दीपमालिका कथा' में दीपोत्सव के कारण की चर्चा है। चौबीस 'घन कथा' पृथ्वीराज और रावल समरसिंह का नागौर के खट्टू वन की भूमि में गड़ा धन निकालने जाने का, धर्मायन कायस्थ द्वारा यह ससन्चार पाकर सुलतान गोरी के याक्रमण और युद्ध में पराजित होकर बन्दी होने तथा दिल्ली में कर देकर छुटकारा पाने का और इसके उपरान्त रावल और चौहान के पुनः खट्टू बन जाकर नाना प्रकार के विघ्नों को पार करने का तथा उसका