पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/१२९

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संगठन, चामंडराय की बेड़ियाँ काटी जाने, काँगड़ा के हाहुलीराव हमीर को मनाकर अपने पक्ष में लाने वाले चंद का छल पूर्वक देवी के मन्दिर में बन्दी किये जाने और हमीर के शाह के पक्ष में जाने का समाचार पाकर पृथ्वीराज द्वारा प्रेषित पावस पुंडीर का हमीर के निकल भागने परन्तु उसके दल का सफाया कर डालने, रैन सी को राज्य भार समर्पण, भयंकर युद्ध में पृथ्वीराज के बन्दी होने और हाथी पर राजनी ले जाये जाने, रावल जी तथा अन्य सामंतों की वीरगति, संयोगिता का प्राण त्याग, वीरभद्र की कृपा से चंद्र का देवी के मन्दिर से उदार, दिल्ली में क्षत्राणियों का चितारोहण, पृथ्वीराज का हुजाब खाँ की प्रेरणा से चतु विहीन किये जाने, नेत्र-हीन महाराज का पश्चाताप और वीरभद्र द्वारा शोकाकुल राजकवि को प्रबोध का चित्रण है । सरसठवें 'वान बेध प्रस्ताव' में दुखी कवि का दिल्ली पहुँचकर ढाई सास में 'पृथ्वीराज-'रासो' का प्रणयन कर, उसे अपने श्रेष्ठ पुत्र जल्ह को अर्पित कर, परिवार से विदा लेकर, योगी के वेश में स्वामि धर्म हेतु गज़नी गमन, उपाय विशेष से सुलतान से मिलकर और उसे प्रसन्न करके पृथ्वीराज के शब्द वेधी बाण का कौशल देखने को प्रस्तुत करने, गज़नी दरबार में नेत्र-रहित राजा को सुलतान की बैठक का पता युक्तिपूर्ण वाक्यों द्वारा देकर उनके बाग से सुलतान का वध कराने के उपरान्त अपनी जटाथों में छिपी छुरी राजा को प्राणान्त- हेतु देकर योग द्वारा अपने प्राण त्याग करने का प्रसंग है । अड़सठवें 'राजा रयन सी नाम प्रस्ताव' में दिल्ली में रैन सी की राजगद्दी और गज़नी में शोरी के उत्तराधिकारी की तल्तनशीनी, पंजाब की सीमा स्थित शाही सेना पर रैन सी के आक्रमण और लाहौर में अपने थाने बिठाने के फलस्वरूप मुस्लिम चढ़ाई तथा हिन्दू दल का दिल्ली दुर्ग में रहकर उससे मोर्चा लेने का निश्चय, युद्ध में दुर्ग को दीवाल टूटने पर रैन सी का वीर क्षत्रियों सहित संग्राम में वीर गति प्राप्त करने, दिल्ली के पराभव के बाद कन्नौज पर मुस्लिम अभियान और युद्ध में जयचन्द्र की मृत्यु का वर्णन है। अंतिम 'महोबा समयो' में समुद्रशिखर-गढ़ ले पद्मावती का हरण करके श्राते हुए पृथ्वीराज पर गोरी का आक्रमण और युद्ध में उसके वन्दी किये जाने तथा चौहान के कुछ सैनिकों का भूल से महोबा के राज उद्यान में ठहरने और वहाँ के माली से बतनड़ होने पर उसे मार डालने के फलस्वरूप राजा परमाल की आज्ञा से इन सबके मारे जाने, पृथ्वीराज की महोबा पर चढ़ाई और महान युद्ध में आल्हा ऊदल सरीखे योद्धाओं की मृत्यु के बाद महोबा- पतन तथा पज्जनराय को वहाँ का अधिपति नियुक्त किये जाने का वृत्तन्त है ।