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( १२२ )

रूपान्तर

एक दान पहुनी नरेस कैमासह मुक्यौ ।
उर उप्पर थरहरथौ वीर कंतर चुक्यौ ।।
बियौ बान संधान हन्यौ सोमेसर नंदन ।
गाढौ कारे निग्रहौ षनिब गडयौ संभरि धन ।।
थल छोरि न जाइ आभागरौ गाड्यौ गुन गहि अग्गरौ ।
इम जपै चंद वरद्दिया कहा निघट्टे इय प्रलौ ।।

--रासो, पुत्र १४९६, पद्म २३६

( २ ) मूल

अगहुम गहि दाहिमओ रिपुराय वयं करु,
कूडु मन्नु मम ठवओ एहु जम्बुर ( प ? ) निलि जग्गरू ।
सह नामा सिक्खवड जइ सिविखविड बुझाई,
जपइ चंदबलिद्दु मज्झा परमक्खर सुझइ ।
पहु पहुबिराय समधिनी सधैँभरि सउण्इ सम्भरिसि,
कईबास विश्वास विसविणु मच्छिविवद्धश्रो मरिसि ।।

--पृष्ठ वही, पद्यांक (२७६)

रूपान्तर

अगह मगह दाहिमौ देव रिपु राइ पयंकर ।
कूर सन्त जिन करो मिले जंबू वै जंगर ।
मो सहनामा सुनौ एह परमारथ सुज्झै ।
अष्षै चंद बिरद्द बियौ कोई एह न बुज्झै ।।
प्रथिराज सुगवि संभरि धनी इह संभति संभारि रिस ।
कैमास बलिष्ठ बसीठ विन म्लेच्छ बंत्र बंध्यौ मरिस ।।

--रासो, पृष्ठ २१८२, पद्म ४७६

( ३ ) मूल

त्रिरिह लक्ष तुषार सबल पपरीश्रइ जसु हय,
चउदसय मयमत दंति भज्जति महासय ।
वीसलक्ख पायक्क सफर फारक्क धणुदर ,
धगुदर, अरू बलु यान सङ्घ कु जाण्इ तांह पर ।
छत्तीसलक्ष नराहिव विहिविनडिओ हो किम भयउ,
जइचन्द न जागर जल्हुकइ गयउ कि मूल कि घरि गयउ ।।

--पृष्ठपद्यांक (२७८)