पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/१३६

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( १२६) करि धर्म देव देवर अनेक | देहु देव || पंग जीव । षोड़सा दान दिन मो सीख सानि प्रभु कलि अथि नहीं राजा सुत्रीय || हंकि पंग राइ मंत्रिय समान । लहु लोभ अब बुल्यो नियान || गाथा के के न गए महि महु दिल्ली ढिल्लाय दीह होहाय । विहरंतु जासु किन्ती तो गया नहि गया हुति ॥ पद्धड़ी करि धम्म देव देउल अगेन । सोलसा दारा दिखि देहु दे || महु सिक्ख मरिण पहु पंग जीव ! कतिहि व्यत्थि राहि राम्रा सुगीव || हकि पंग-राव संति समाणु । लहु लोहेा तु बोल्लिउ खिखासु ॥ गाहा के के ए गय महि-मज्झि दिल्ली दिल्ला बिउ दीह होहाहु । विहरs जाहं तु किति ते यया विाहि गया हवन्ति ॥ पद्धटिया पहु पंग राइ राजस् जरग । आरंभ अंग कीनौ सुरग्य || पहु पंग राय राजसुत्र जग्ग । यारंभ अंग कीयड सरग | जित्तिश्रा राइ सब सिंघवार । राय सव्व मेलिया कंठ जिमि सुतिहार || जुम्गिनिपुरेस सुनि भयौं वेद । वह न माल म हि भेद || सुकले दूत तब तिह समत्थ । तत्य ॥ जित्ति मेलिय कंठि जिमि मुक्तिग्रहारि ॥ जोइणिपुरेस सुशि हुन खे । श्रावण साल कि हिश्र भेन || मोकल्लिका दूर तहिं समत्थ । उत्तरित्र तारा यवारि सिंघवारि । तत्थ || ताहि । उतरे आवि दरवार बुल्यौ न वयन प्रिथीराज सकल्यौ सिंघे गुरजन निव्याहि । उच्चरिय गरुव गोविन्दराज | कलि मध्य जाग को करे याज ! सतिजुग्ग कहहि बलिराज कीन । तिहि किति काज त्रिलोकदीन ॥ त्रेता तु किन्ह खुनंद कुब्बेर कोपि बरख्यो धन धर्मपूत द्वापर बोल्लिउ रा ता वयण पुहविराह । संकेल्लियस गुरुयो बाइ || उच्चरित्र गुरुश्र गोविन्दरज । कलि मज्मि जग्ग को करइ बज्ज || सतबुधि कहइ बलिराय कीय तेा किति काज तिलो तेअड् तु कीय रघुनंद दोय || राइ | राइ | सुभाइ ॥ कुबेर कोइ वरतियउ सभाइ ॥ सुनाइ । वणि धम्मपुत दावरि मुखाइ । तिहि पछ बीर थरु थरि सहाई ॥ कलि मभिजग्गु को करण जोग । farat बहु विधि ह लोग || तहि पक्खि वीर अरिसहाइ ॥ कलिमभि जग्गको करण जोन । बिगरहिं बहु वह इस लोन ||