पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/१४५

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'रास'छन्द और 'रासो'काव्य भले ही सीधे सम्बन्धित न हो परन्तु बिरहाङ्क और स्वयम्भु के'सावंघ'अवश्य ही उससे छन्दों के अनुशासन के कारण अधिक सम्पर्क' में हैं । यद्यपि ये दोनों विद्वान् 'साबंध' के छन्दों के विषय मे नहीं रखते फिर भी इतना तो कहा जा ही सकता है कि एक समय रासा या रासो काव्यों में अनेक विशिष्ट छन्दों का व्यवहार इष्ट होकर शास्त्रोक्त हो गया था । और छन्दों की विवधता, केदारा राग में गाये जाने वाले, आदि से अन्त तक एक छन्द में प्रणीत गीत-काव्य 'बीसलदेव रासो' तथा दो चार और को छोड़कर शेष सभी रासो-ग्रंथों में मिलती है।

चारणों, भाटों तथा जैन कवियों द्वारा रास और रासो नाम से विविध विषय और रस वाले अनेक काव्य लिखे गये जिनका अध्ययन 'पृथ्वीराज-रासो' के परिदृश्य को समझने में सहायक होगा ।

अपभ्रंश में बारहवीं शती के अनेक रास-काव्य मिलते हैं । दुःखान्त प्रबन्ध काव्य'मुजरास'के फुटकर छन्द ( जिनके प्रकार और संख्या अज्ञात हैं ) 'सिद्धहेमशब्दानुशासनम्' तथा 'प्रबन्ध-चिन्तामणि' (मेरुतुङ्ग) में मिलते हैं, जो मालवा के राजा मुंज और कर्नाटक के राजा तैलप की बहिन मृणालवती की कथा से सम्बद्ध हैं । कवि हमारा ( अब्दुल रहमान ) के सं० १२०७ त्रि० के सुखान्त प्रबन्ध काव्य 'सन्देश रासक' में २२ प्रकार के २२३ छन्द हैं तथा एक प्रतिपतिका का विरह-वर्णन इसका विषय है । शालिभद्रसूरि का सं० १२४१ वि० का 'भरत बाहुबलि रास' बीर रसात्मक ग्रन्थ हैं,जिसके २०३ छन्दों में भगवान् ऋषभदेव के दो पुत्रों भरतेश्वर और बाहुबलि का राज्य के लिये संघर्ष वर्णित है तथा ६३ छन्दों वाला शान्त रस विधायक उनका दूसरा ग्रन्थ'बुद्धि रास'हैं । तेरहवीं शताब्दी के कवि सगु कृत 'जीव दयारास' तथा ३५ छन्दों वाला 'चंदन-बाजारास' १४ हैं । जिनदत्तसूरि के 'उपदेशरसायनरास' ५ में एक ही प्रकार के छन्द में शान्त रस की ८० चतुष्पदियाँ हैं, जिनमें जैन धर्माचार का


१. भारतीय विद्या, बंबई;

२. वही ;

३. वही ;

४. राजस्थान भारती, भाग २, अंक ३-४ जुलाई १९५३ ई०, पृ० १०६-१२ :

५. अपभ्रंश काव्यत्रयी, गायकवाद ओरियन्टल सीरीज़, संख्या ३२;