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सं० १७२० वि० के लगभग निश्चित किया गया है। मेवाड़ के नरेशों का वर्णन करने वाला जैन दौलत विजय ( दलपति विजय ) कृत 'खुमान रासो' मेनारिया जी के अनुसार सं० १७६७-९० वि० की रचना है । सं० १६९१ वि० का सुमतिहंत विरचित प्रेमाख्यानक काव्य 'विनोद रस' और एक जैन कथा वर्णन करने वाला उन्नीसवीं शताब्दी का 'श्रीपाल रास' भी उल्लेखनीय डिंगल में गंभीर रासो काव्यों के अतिरिक्त व्यंग्य भावात्मक रासो काव्य भी रचे गये, जिनका श्रेय जैन कवियों को है । कवि काह( कीर्ति सुन्दर )का 'माकद रासो'(खटमल रास )ऐसी ही रचनाओं में से एक है । श्री अगरचंद नाहटा ने ऐसी ही हास्यात्मक रचनाओं में 'अंदर रासो', 'खीचड़ रासो', और 'गोधा रासो' की भी चर्चा की है ।

पिंगल ( राजस्थानी व्रजभाषा) में भी अनेक रासो काव्य रचे गये हैं । प्रबल जनश्रुति पर आधारित तथा 'प्राकृत पैङ्गलम्' द्वारा पुष्ट शार्ङ्गधर रचित रणम्भौर के हुतात्मा शासक हम्मीर देव चौहान का कीर्ति-गायक 'हम्मीर रासो' महोबा के अधिपति परमर्दिदेव चंदेल उपनाम परनाल के यश सम्बन्धी अज्ञात कवि की रचना 'परमाल रासो' ; करौली राज्य का इतिहास बताने वाला, नल्लसिंह भट्ट रचित 'विजेपाल रासो'जिसका रचनाकाल मिश्रबंधु सं० १३५५ वि०, नाहटा जी १८ वीं या १९ वीं शती और मेनारिया जी सं० १९०० वि० बतलाते हैं; न्यामत खाँ उर्फ जान कवि का पितृवृत वर्णन करने वाला, सं० १६९१ वि० में रचित 'कायम रासा' रासा' या 'दीवान अलिक खान रासा '७; रतलाम के महाराजा रतनसिंह के युद्धादि का परिचय देने वाला सॉं चारण कुंभकर्ण का सं० १७३२ बि० में रचित 'रतन


१. खुँमाण रासौ, ना० प्र० प०, वर्ष ५७, अंक ४, सं० २००९

वि०, पृ० ३५०-५६ ;

२. राजस्थानी भाषा और साहित्य, पृ० १४४;

३. राजस्थान भारती, भाग ३, अंक ३-४, सन् १९५३ ई० ;

पृ० ९७-१०० ;

४. वहीं, पृ० ९७;

५. नागरी प्रचारिणी ग्रंथ माला २३, सन् १९१९ ई०;

६. मिश्रबंधु विनोद, प्रथम भाग, तृतीय संस्करण, पृ० १६७;राजस्थान

का पिंगल साहित्य, पं० मोतीलाल मेनारिया, पृ० ५३-५५ ;

७, राजस्थान भारती, भाग १, अङ्क १, १९४६ ई०, पृ०३९-४६;