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रासो' मेवाड़ के राणा कर्णसिंह तक के शौर्य-गीत गाने वाला सं० १७३७-५५० रचित सिंढायच दयालदास कृत 'राणा रासो', सं० १७८५ वि० में जीवराज कृत 'हम्मीर रासो'; गुलाब कवि कृत १६ वीं शती का 'करहिया रौ रामसौ' तना हुमायूँ के भाई कामरों को परास्त करने वाले बीकानेर के महाराजा राव जैत सी का प्रशस्ति वाचक, पं० नरोत्तमस्वामी द्वारा प्रकाश में लाया हुआ, अज्ञात कवि रचित 'राउ जैत सी रौ रासौ' सुप्रसिद्ध रचनायें हैं । इनके अतिरिक्त कृष्ण का रास वर्णन करने वाले व्यास कृत 'रास'( लिपिकाल सं० १७२४ वि० ) और रसिकराय कृत 'राम' विलास'( लिपिकाल सं० १८०० वि० ) भी पिंगल की रचनायें हैं तथा सं० १६२५ वि० में कवि जल्ह द्वारा प्रणीत 'बुद्धि रासो' जो रासो होते हुए भी प्रेमाख्यान है, उल्लेखनीय हैं ।

यद्यपि इन सारे रास, रासा, रासो, रासौ, रायता, रायसौ ग्रन्थों का सम्यक अध्ययन अभी तक प्रकाश में नहीं आया है परन्तु काल, यश और प्रचार की कसौटी पर 'पृथ्वीराज रासो' को जो मान प्राप्त हुआ वह इन में से किसी के भाग्य में न पड़ा । श्रारोहावरोहपूर्ण विशिष्ट मानव जीवन के संघर्ष का चित्रण, वर्णं अ र अर्थ मूर्तियों द्वारा सृजन कर, यति-गति वाले वांछित छन्दों से अपने पात्रों के श्रान्तरिक उद्वेलन को शाश्वत रूप से मूर्त करते हुए कवि ने इतिहास और कल्पना के योग से उनके विजय, आल्हाद अवसाद, होम, चिन्ता, ग्राशा, निराशा यादि के द्वारा श्रोता अथवा पाठक के चित्त को अभिभूत करने का मंत्र सिद्ध किया है । यही कारण है रासो की साहित्यिक जय-दुन्दुभी का । उसकी सुदीर्घ और सुनिश्चित परम्परा अपनी छाप सहित परवर्ती रासो-काव्य में निरन्तर प्रतिविम्वित देखी जा सकती है।


१. राजस्थान का पिंगल साहित्य, पृ० १६९ ; राजस्थान भारती, भाग ३,

श्रङ्क ३-४ जुलाई १९५३ ई०;

२. राजस्थान का पिंगल साहित्य, पृ० ११५; राजस्थान में हिन्दी के

हस्त लिखित ग्रन्थों की खोज, प्रथम भाग, पृ० ११८ ;

३. नागरी प्रचारिणी ग्रंथ माला. १३, सन् १६०८ ई० ;

४. राजस्थान भारती, भाग २, अङ्क २, सन् १९४६ ई०, पृ० ७०-८५;

५. राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रंथों की खोज, प्रथम भाग, पृ० १२१;

६. वही पृ० १२१;

७. वही, पृ० ७६-७७, राजस्थान का पिंगल साहित्य, पु० ७०-२ ;