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से किसके मुँह से उनका नाम नहीं निकला ? और सुरत में नल के स्वरूप मैं अपने पति का ध्यान करके किसने अपने काम को जागृत नहीं किया ?' :

न का निशि स्वमगतं ददर्श तं जगाद गोत्रस्खलिते च का न तम् । तदात्मताच्यातधवा रते चं का चकार वा ना स्वमनोभवोद्भवम् ॥

३० सर्ग १;

और आगे वे लिखते हैं-- 'दमयन्ती, इच्छा से पति बनाये हुए नल को निद्रा में किस रात्रि में नहीं देखती थी ? स्वम अष्ट वस्तु को भी भाग्य से दृष्टिगोचर कर देता है' :

निमीलिताददियुगाच्च निद्रया हृदोऽपि बाह्येन्द्रिय मौनमुद्रितात् ।
अदर्शि संगोप्य कदाप्यवीक्षितो रहस्यमस्या : रुमहन्महीपतिः ४०,

वही;

स्वप्न में देखे हुए प्रिय की बहुधा प्राप्ति ने 'स्वप्न में प्रिय दर्शन' को कालान्तर में एक कथा-सूत्र बना दिया । 'श्रीमद्भागवत्' में बलि के औरस पुत्र, शंकर के परम भक्त, शोणितपुर के शासक वाणासुर के "ऊषा नाम की एक कन्या थी । कुमारावस्था में उसने स्वप्नकाल में, ग्रहश्य और श्रुत प्रद्युम्न के कुमार परम सुन्दर अनिरुद्ध से रति-सुख प्राप्त किया । फिर अचानक उन्हें न देखने पर ऊषा-- 'हे प्रिय, तुम कहाँ हो' इस प्रकार कहती हुई प्रति व्याकुल हो उठ बैठी और अपने को सखियों के बीच में देखकर प्रति लज्जित हुई" :

तस्योषा नाम दुहिता स्वम प्राद्युम्निना रतिम् ।
कन्यालभत कान्तेन प्रागदृष्टश्रुतेन सा ।। १२
सा तत्र तमपश्यन्ती कासि कान्तति वादिनी ।
सखीनां मध्य उत्तस्थौला ब्रीडिता भृशम ।। १०-६३ १३;

दमयन्ती को नल मिले और ऊषा को अनिरुद्ध । इसी प्रकार साहित्य में स्वप्न, प्रिय द्वारा प्रिया और प्रिया द्वारा प्रिय की प्राप्ति की योजना का एक मिस हो गया ।

'पृथ्वीराज रासो' में अनेक स्वमों का उल्लेख हैं परन्तु एक स्थल पर प्रिया को निद्राकाल में देखने के उपरान्त प्रिय को उसकी प्राप्ति स्वप्न-दर्शन-कथा-सूत्र से आलोकित है। नारी यदि स्वप्न में देखे हुए पुरुष को प्राप्त कर सकती है तो पुरुष को स्वप्न में देखी हुई नारी की प्राप्ति से कवि कैसे वञ्चित कर सकता है ।

रासो के 'हंसावती विवाह नाम प्रस्ताव ३६' में रणथम्भौर के राजा