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वारें खींच लीं, फिर युद्ध रूपी सरोवर में तलवारों रूपी हिलोरें उठीं और हंसात्म रूप कमल खिल उठे

इस निसि वीर कढिय समर, काल फेद अरि कढि ।
होत प्रति चित्रंरा पहु, चकाव्यूह रचि ठढूिढ |! ७०
समर सिंह रावर । नरिंद कुण्डल अरि धेरियं ।।
एक एक असवार । बीच विच प्राइक फेरिय ॥
मद सरक्क तिन अग्ग । बीच सिल्लार सु भीरह' ।।
गोरंधार विहार । सोर छुट्टी कर तीरह |.
रन उदै उदै बर अरुन हुआ ! दुहू लोह कढूढी विभर ।।
जल उकति लोह हिल्लोर | कमल हंस नंचै सु सर ।।७१, स० ३६


लगभग तत्कालीन फ़ारसी इतिहासकारों ने हिन्दू सेना को बिना किसी ढंग के अस्त-व्यस्त युद्ध करने वाला बयान किया है तथा अपने पक्ष की युद्ध-शैली का विवरण देते हुए कहीं यह उल्लेख नहीं किया है कि उनमें भार-तीथ-युद्ध-पद्धति कभी अपनाई जाती थीं ।।

नगर-वर्णन–अनेक नगरों, ग्रामों और दुर्गा का अल्लेख करने वाले इस महाकाव्य में अन्हलवाड़ा पट्टन, कन्नौज, दिल्ली और ग़ज़नी के वर्णन विस्तृत हैं जो संभवतः युगीन चार प्रतिनिधि शासकों की राजधानियाँ होने के कारण किये गए प्रतीत होते हैं। इन वर्णनों को अनुमान या काव्य-परंपरा के अधिार पर नहीं किया गया है वरन् इनमें एक प्रत्यक्षदर्शी का सो अनुभव सन्निहित है । पइनपुर के वर्णन का एक अंश देखिये :

तिन नगर पहुच्यौ चंद कवि । मनों कैलास समाज लहि ।।
उपकं पहले सागर अबला । सन साह चाहने चलहि ॥ ५०
सहर दिवि अंप्रियन | मनहू बहर वाहन दुति ।।
इक चलंत । इक्क ठलवंत नवन भत्ति ।। .
मन दंतन दंतियन } इली उपर इल' भार ।
विप भारथ परि दसि । किए एक व्यापार ।।
रजकैब लष्प दस बीस बहु । दोह गंजन बदह परयौ ।।.
अनेक चीर सूपरु फिरंग । मनों सेर कं भरयौ । छं० ५१,'स० ४६


पनघट-वर्णन–श्रीमद्भागवत् में यमुना तट पर की हुई कृष्ण की लीला के वर्णन ने कालांतर में क्रमश: साहित्य में धनष्ट वर्णन की परंपरा का सृजन किया होगा । रासकार ने भी पनघट की चर्चा की है। पश्चनपुर ।