पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ८ )

ऐतिहासिक वाद विवादों के कोलाहल से दूर, ताम्रपत्रों की नीरसे जाँच से पृथक तथा वंशावलियों, पट्टे परवानों और शिलालेखों के द्वंद से अलग पृथ्वीराज रासो' हिंदी साहित्यकारों की अमूल्य विरासत है। काव्य-सौन्दर्य की दृष्टि से यह एक अनूठी रचना है। विविध चीर-फाड़ अंतत: इसके लिये हितकर ही हुई और अनेक भर्मज्ञ इसका रसास्वादन करने के लिये उन्मुख हुए।

इस काव्य के अादि (सत सहस ना सित्र सरस; १-९६०) तथा अंत (सहस सत्त रूपक सरस;६७-५०) में कवि ने स्पष्ट लिख दिया है कि रासो मैं सात हजार रूपक हैं परन्तु मा प्र० स० द्वारा प्रकाशित रासो की वृहत् वाचना में ६९ समय और १६३७६ छंद पाये जाते हैं । इस प्रकार देखते हैं कि सो का आकार बुल से सवा दो गुना अधिक बढ़ गया है। पंजाब विश्वविद्यालय के दूलनर द्वारा विज्ञापन सौ की रोटो वाली प्रति या माध्यम बचना में प्राय छंद की गणना के हिसाब से छेद संख्या लगभग ७००० है, बीकानेर और शेखावटी (जयपुर) की रासो की लघु वाचना में १६ समय हैं और छेद संख्या ३५०० है तथा गुजरात के धारणोज गाँव की लघुतर वाचना वाली प्रति में छेद संख्या १३०० हैं। ये तीनों संस्करण अभी तक प्रकाशित नहीं हुए हैं। परन्तु जहाँ तक ऐतिहासिक आक्षेपों का प्रश्न है वे इनमें भी अंशत: वर्तमान हैं । प्रकाशित रासो में प्रक्षेपों के घटाटोप की संभावना को भलीभाँति जानते हुए भी वर्तमान स्थिति में उन्हें श्रृथक करने की कठिनाई के कारण उस संपूर्ण सामग्री की काय की कसौटी पर लाने के लिए बाध्य होना पड़ता है।

वस्तु-वर्णन

काव्यों में विस्तृत विवरण के दो रूप होते हैं--एक वस्तु वर्णन द्वारा शौर दूसरा पात्र द्वारा भावाभिव्यंजना से ! वस्तु वर्णन की कुशलता इतिवृतात्मक अंश को बहुत कुछ सरस बना देती है । सो में ऐसे फटकर धनों का ताँता लगा हुआ है जिन्हें कवि ने वन विस्तार हेतु चुना है । संक्षेप में उनका उल्लेख इस प्रकार है :

व्यूह-वन-भारत की हिन्दू सेनाओं का व्यूह बद्ध होकर लड़ने को विवरण मिलता है और कभी-कभी मुस्लिम सेना को भी किसी भारतीय व्यूह को अपनाये युद्ध करता हुआ बतलाया गया है। व्यूह-वर्णन के ढङ्ग झी परम्परा कबि को महाभारत से मिली प्रतीत होती है। एक चक्रव्यूह का प्रसंग देखिये जिसके अर्जुन के अन्त में बड़े काव्यात्मक ढंग से कवि' कहत है कि अरुणोदय होते ही इण का उदय हुआ, दोनों श्रोर के सुटों ने लुले-