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शिष्यार्थ प्रददौ चाथ द्रोणाय कुरुपुङ्गवः।
शिखण्डिनं महाराज पुत्रं स्त्रीपूर्विणं तथा॥६१...
एवमेव महाराज स्त्री युनान द्रुपदात्मजः।
स सम्भूतः कुरुश्रेष्ठ शिखण्डी रथसत्तमः॥६४
ज्येष्ठा काशिपते कन्या अम्बा नामेति विश्रुता।
द्रुपदस्य कुले जाता शिखण्डी भरतर्षभ॥६५
नाहमेनं धनुष्पाणिं युयुत्सं समुपस्थितम्।
मुहूर्तमपि पश्येयं प्रहरेयं न चाप्युत॥६६
व्रतमेतन्मम सदा पृथिव्यामपि विश्रुतम्
स्त्रियां स्त्री पूर्व के चापि स्त्रीनाम्नि स्त्रीस्वरूपिणि॥६७
न मुञ्चेयमहं वाणम् इति कौरवनन्दन॥६८
न हन्यामहमेतेन कारणेन शिखण्डिनम्।
एतत तत्वमहं वेद जन्म तात शिखण्डिनः॥६९,

अम्बोपाख्यानपर्व (उद्योगपर्वणि);

रासो के 'कनवज्ज समयो ६१' की लिङ्ग-परिवर्तन सम्बन्धिनी कथा इस प्रकार है। कन्नौज और दिल्ली के मार्ग में जब कान्यकुब्जेश्वर की विशाल वाहिनी से चारों ओर से घिरे हुए पृथ्वीराज संयोगिता का अपहरण करके, उसे घोड़े पर अपने आगे बिठाये दिल्ली की ओर बढ़ रहे थे तथा उनके सामंत अपने स्वामी की रक्षा के लिये युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दे रहे थे, उस समय अपने योद्धा वीरवर अत्ताताई चौहान को विषम रण करके वीरगति पाते देखकर (छं° १९५९-६१), दिल्लीश्वर ने चंद से पूछा—"अमित साहसी शूरमा अत्ताताई का पराक्रम देखकर दोनों दलों में टकटकी बँध गई थी; हे कवि, तुम अतुल बल, असमान शरीर, औपमेय योद्धा और बेजोड़ युद्ध के स्वामी की उत्पत्ति की कथा सुनाओ':

अत्ताताई अभंग भर। सब पहु प्राक्रम पेखि॥
लगी टगटगी दुअ दलनि। त्रिप कवि पुच्छि विसेष॥१९७०
अतुलित बल अतुलित तनह। अतुलित जुद्ध सु बिंद।
अतुलित र संग्राम किय। कहि उतपति कवि चंद॥१९७१

कवि ने उत्तर दिया—'आशापुर राज्य-मंडल के तोमरों का प्रधान (मंत्री) चौरंगी (चतुरंगी) चौहान था, उसके घर में असंख्य धन और पतिव्रता पत्नी थी, जिसके गर्भ से उत्पन्न पुत्री की ख्याति पुत्र रूप में हुई; अत्ताताई नामकरण करके कुमारों सदृश उसके संस्कार किये गये और ब्राह्मणों को